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________________ भगवती सूत्र श. २४ : उ. १: सू. ८७-९३ (सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) ८७. वही अपनी उत्कृष्ट काल-स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी -पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिकों में उपपन्न होता है। वह अधः-सप्तमी-पृथ्वी में जघन्यतः बाईस सागरोपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है। ८८. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? शेष वही सप्तम-पृथ्वी के प्रथम गमक की वक्तव्यता यावत् भवादेश तक, इतना विशेष है-स्थिति और अनुबन्ध जघन्यतः कोटि-पूर्व उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व, शेष पूर्ववत्। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो-कोटि-पूर्व-अधिक-बाईस-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-छासट्ठ-सागरोपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (आठवां गमक : औधिक और जघन्य) ८९. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव) जघन्य काल की स्थिति वाली अधःसप्तमी-पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है, वही प्राप्ति तथा संवेध भी वही सातवें गमक के सदृश वक्तव्य है। (नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ९०. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाली अधःसप्तमी-पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है, वही प्राप्ति वक्तव्य है यावत् अनुबन्ध तक (भ. २४/८७,८८)। भव की अपेक्षा जघन्यतः तीन भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः पांच भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो-कोटि-पूर्व-अधिक-- तेतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः तीन कोटि-पूर्व-अधिक-छासट्ठ-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। छट्ठा आलापक : नरक में उत्पन्न होने वाले संज्ञी-मनुष्य ९१. भन्ते! यदि नैरयिक जीव मनुष्यों से उपपन्न होते हैं तो क्या संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? असंज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? गौतम! संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं, असंज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते। ९२. भन्ते! यदि संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं, तो क्या संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी -मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते गौतम! संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं, असंख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न नहीं होते। ९३. भन्ते! यदि संख्येय वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं, तो क्या संख्येय वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? संख्येय वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? ७२३
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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