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________________ श. १२ : उ. १,२ : सू. २६-३० भगवती सूत्र दुःखित और संसार-भय से उद्विगन हो गए, उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को वंदननमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर जहां श्रमणोपासक शंख था, वहां आए, वहां आकर श्रमणोपासक शंख को वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर इस अर्थ के लिए सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की। उस समय उन श्रमणोपासकों ने प्रश्न पूछे। प्रश्न पूछकर अर्थ को हृदय में धारण किया। हृदय में धारण कर श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार किया वंदन-नमस्कार कर जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में लौट गए। २७. भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को 'भंते' ऐसा कहकर वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर इस प्रकार कहा-भंते ! क्या श्रमणोपासक शंख देवानुप्रिय के पास मुंड होकर अगार से अनगारता में प्रवर्जित होने में समर्थ है ? यह अर्थ संगत नहीं है। गौतम ! श्रमणोपासक शंख बहुत शीलव्रत, गुण, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास के द्वारा यथा-परिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्ष तक श्रमणोपासक-पर्याय का पालन करेगा। पालन कर एक महीने की संलेखना के द्वारा अपने शरीर को कृश बनाएगा, कृश बनाकर साठ-भक्त का छेदन करेगा कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर, समाधिपूर्ण दशा में कालमास में काल को प्राप्त कर सौधर्म कल्प में अरुणाभ विमान में देवरूप में उपपन्न होगा। वहां कुछ देवों की स्थिति चार पल्योपम प्रज्ञप्त है। वहां शंख देव की स्थिति भी चार पल्योपम होगी। २८. भंते ! वह शंख देव उस देवलोक से आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनंतर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा ? कहां उपपन्न होगा ? गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशांत, मुक्त और परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा। २९. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। ऐसा कह कर यावत् भगवान गौतम संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहार करने लगे। दूसरा उद्देशक उदयन-आदि का धर्म-श्रवण-पद ३०. उस काल और उस समय में कौशाम्बी नाम की नगरी थी-वर्णक। चंद्रावतरण चैत्य-वर्णक। उस कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, चेटक राजा का दौहित्र, मृगावती देवी का आत्मज, श्रमणोपासिका जयन्ती का भतीजा उदयन नामक राजा था-वर्णक। उस कौशाम्बी नगरी में सहस्रानीक राजा की पुत्रबधू, शतानीक राजा की भार्या, चेटक राजा की पुत्री, उदयन राजा की माता, श्रमणोपासिका जयन्ती की भाभी श्रमणोपासिका मृगावती नामक देवी थी-सकुमाल हाथ-पैर वाली, यावत् सुरूपा, जीव-अजीव को जानने वाली, यावत् यथा-परिगृहीत तपःकर्म के द्वारा आत्मा को भावित करती हई विहार कर रही थी। उस कौशाम्बी नगरी में सहसानीक राजा की पुत्री, शतानीक राजा की बहन, उदयन राजा की भुआ, मृगावती देवी की ननद, वशालिक ४४८
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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