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________________ भगवती सूत्र श. २४ : उ. १: सू. ५५-६२ ५५. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं तो क्या जलचर जीवों से उपपन्न होते हैं.... पृच्छा । गौतम ! जलचर-जीवों से उपपन्न होते हैं, जैसे असंज्ञी यावत् पर्याप्तक-जीवों से उपपन्न होते हैं (भ. २४/४,५), अपर्याप्तक-जीवों से उपपन्न नहीं होते । ५६. भन्ते ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिक के रूप में उपपन्न होने योग्य है, वह जीव कितनी पृथ्वियों में उपपन्न होता है ? गौतम ! वह जीव सातों पृथ्वियों (नरकों) में उपपन्न होता है, जैसे - रत्नप्रभा में यावत् अधः सप्तमी में। (भ. २ / ७६) प्रथम नरक में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि ( पहला गमक : औधिक और औधिक) ५७. भन्ते ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय- तिर्यग्योनिक-जीव जो रत्नप्रभा - पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होने योग्य है, वह जीव कितने काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है ? गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है । ५८. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं ? असंज्ञी की भांति वक्तव्यता । (भ. ५९. भन्ते ! उन जीवों के शरीर किस गौतम ! छह प्रकार के संहनन वाले ऋषभ-नाराच संहनन वाला (ठाणं, ६/३०) अवगाहना असंज्ञी जीवों की भांति, जघन्यतः एक हजार योजन । ६०. भन्ते ! उन जीवों का शरीर किस संस्थान वाला प्रज्ञप्त है ? गौतम ! छह प्रकार के संस्थान वाला प्रज्ञप्त है, जैसे- समचतुरस्र संस्थान वाला, न्यग्रोध - संस्थान वाला यावत् (भ. १४ / ८१) हुण्डक - संस्थान वाला । ६१. भन्ते ! उन जीवों के कितनी लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं ? २४/८ ) । संहनन वाले प्रज्ञप्त है ? प्रज्ञप्त हैं, जैसे - वज्र - ऋषभ नाराच संहनन वाला, यावत् सेवार्त्त - संहनन वाला। शरीर की अंगुल का असंख्यातवां भाग, उत्कृष्टतः गौतम ! छह लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे - कृष्ण - लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या । उनमें दृष्टि भी तीनों प्रकार की होती है। उनमें तीन ज्ञान अथवा अज्ञान की भजना - विकल्प है। योग भी तीनों प्रकार का होता है। शेष असंज्ञी - जीवों की भांति वक्तव्य है (भ. २४/१६-२६) यावत् अनुबन्ध, इतना विशेष है उनमें प्रथम पांच समुद्घात होते हैं । वेद तीनों प्रकार होते हैं। शेष - अवशेष पूर्ववत् । यावत् - ६२. भन्ते ! वह संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव रत्नप्रभा - पृथ्वी में यावत् गति - आगति करता है ? ७१७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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