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________________ भगवती सूत्र श. २१ : व. १,२ : उ. २-१० : सू. ६-१५ ६. भंते! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव–इनका मूल जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः असंख्येय काल । ७. भंते! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव-इनका मूल जीव पृथ्वीकायिक-जीव के रूप में उपपन्न होता है, पुनः शालि, ब्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव के मूल जीव के रूप में उत्पन्न होकर कितने काल तक रहता है? कितने काल तक गति-आगति करता है? इस प्रकार उत्पल-उद्देशक (भ. ११/३०-३४) की भांति वक्तव्यता। इस अभिलाप के अनुसार यावत् मनुष्य-जीव। आहार की उत्पल-उद्देशक (भ. ११/३५) की भांति वक्तव्यता। स्थिति जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व वर्ष। समुद्घात, समवहतता और उद्वर्तना की उत्पल-उद्देशक (भ. ११/३७-३९) की भांति वक्तव्यता। ८. भंते! सर्व प्राण यावत् सर्व सत्त्व शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव के मूल जीव के रूप में पहले उपपन्न हुए हैं? हां, गौतम! अनेक बार अथवा अनंत बार । ९. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। दूसरा-दसवां उद्देशक १०. भंते! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव-इनके कंद-रूप में जो जीव उपपन्न होते हैं, वे जीव कहां से आ कर उपपन्न होते हैं? इस प्रकार कंद-अधिकार में वही पूर्वोक्त मूल-उद्देशक अपरिशेष वक्तव्य है यावत् अनेक बार अथवा अनंत बार उपपन्न हुए हैं। ११. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। १२. इसी प्रकार स्कंध-उद्देशक ज्ञातव्य है। इसी प्रकार त्वचा-उद्देशक की वक्तव्यता। इसी प्रकार शाखा-उद्देशक की वक्तव्यता। इसी प्रकार प्रवाल-उद्देशक की वक्तव्यता। इसी प्रकार पत्र-उद्देशक की वक्तव्यता। ये सात उद्देशक पूर्णतया मूल की भांति ज्ञातव्य है। इसी प्रकार पुष्प-उद्देशक की वक्तव्यता, इतना विशेष है-उत्पल-उद्देशक (भ. ११/२) की भांति देव उपपन्न होते हैं। लेश्याएं चार हैं। अस्सी भंग वक्तव्य हैं। अवगाहना जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-अंगुल। शेष पूर्ववत्। १३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। १४. पुष्प की भांति फल-उद्देशक की पूर्ण वक्तव्यता। इसी प्रकार बीज-उद्देशक की वक्तव्यता। ये दस उद्देशक हैं। दूसरा वर्ग १५. भंते! मटर, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, निष्पाव (सेम) कुलथी, चवला, 'सतीण' (मटर का एक भेद) और काला चना-इनके जो जीव मूल-रूप में उपपन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं? ७०१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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