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________________ इक्कीसवां शतक पहला वर्ग पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा १. शालि २. मटर ३. अलसी ४. बांस ५. इक्षु ६. डाभ ७. अभ्र ८. तुलसी-इक्कीसवें शतक में आठ वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में दस उद्देशक हैं। इस प्रकार सब मिलकर अस्सी उद्देशक हो जाते हैं। शालि-आदि जीवों का उपपात-आदि-पद १. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! शालि, व्रीहि, गेहूं, जौ, यवयव-भंते! इनके जो जीव मूल-रूप में उपपन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उपपन्न होते हैं क्या नैरयिकों से उपपन्न होते हैं? क्या तिर्यग्-योनिकों से उपपन्न होते हैं? मनुष्यों से उपपन्न होते हैं? देवों से उपपन्न होते हैं? पण्णवणा (पद ६) अवक्रांति-पद में जैसा उपपात निरूपित है वैसा ही उपपात यहां वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-देव मूल-रूप में उपपन्न नहीं होते। २. भंते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? गौतम! जघन्यतः एक, दो, तीन, उत्कृष्टतः संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं। (उनकी संख्या ज्ञात करने के लिए किए जाने वाले) अपहार की उत्पल-उद्देशक (भ. ११/४) की भांति वक्तव्यता। ३. भंते! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी प्रज्ञप्त है? गौतम! जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-धनुष-परिमाण। ४. भंते! वे जीव ज्ञानावरणीय-कर्म के बंधक हैं? अबंधक हैं? उत्पल-उद्देशक (भ. ११/६-११) की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार वेदन, उदय और उदीरणा की भी वक्तव्यता। ५. भंते! वे जीव कृष्ण-लेश्या वाले हैं? नील-लेश्या वाले हैं? कापोत-लेश्या वाले हैं? छब्बीस भंग वक्तव्य हैं। दृष्टि यावत् इंद्रियों की उत्पल-उद्देशक (भ. ११/१३-२८) की भांति वक्तव्यता। ७००
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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