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________________ भगवती सूत्र श. १२ : उ. १: सू. १५-२० पर पौषधशाला से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर शुद्ध प्रावेश्य मांगलिक वस्त्रों को विधिवत् पहना। पहनकर अपने घर से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर पैदल चलकर श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच निर्गमन किया, निर्गमन कर जहां कोष्ठक चैत्य था - जहां श्रमण भगवान महावीर थे, वहां आया, आकर दांयी ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिण की । प्रदक्षिणा कर वन्दन-नमस्कार किया, वन्दन नमस्कार कर तीन प्रकार की पर्युपासना के द्वारा पर्युपासना करने लगा । १६. उन श्रमणोपासकों ने दूसरे दिन उषाकाल में पौ फटने पर यावत् सहस्ररश्मि दिनकर के उदित और तेज से देदीप्यमान होने पर स्नान, बलिकर्म किया यावत् अल्पभार और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया । इस प्रकार सज्जित होकर अपने-अपने घरों से निकलकर एक साथ मिले। एक साथ मिलकर पैदल चलते हुए श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच निर्गमन किया, निर्गमन कर जहां कोष्ठक चैत्य था, जहां श्रमण भगवान महावीर थे, वहां आएं वहां आकर श्रमण भगवान महावीर यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना के द्वारा पर्युपासना करने लगे । १७. श्रमण भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों को उस विशालतम परिषद में धर्म कहा यावत् आज्ञा के आराधक होते हैं। १८. वे श्रमणोपासक श्रमण भगवान महावीर के समीप धर्म सुनकर, अवधारण कर हृष्ट-तुष्ट हुए, उठकर खड़े हुए, खड़े होकर श्रमण भगवान महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन- नमस्कार कर जहां श्रमणोपासक शंख था, वहां आए, वहां आकर श्रमणोपासक शंख से इस प्रकार बोले- देवानुप्रिय ! गत दिवस तुमने स्वयं ही हमें इस प्रकार कहा था- देवानुप्रिय ! तुम विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाओ। हम उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का स्वाद लेते हुए, विशिष्ट स्वाद लेते हुए, परस्पर एक-दूसरे को खिलाते हुए और भोजन करते हुए पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करते हुए विहार करेंगे। तुमने पौषधशाला में ब्रह्मचर्य-पूर्वक, सुवर्ण-मणि को छोड़कर, माला, सुगंधित चूर्ण और विलेपन से रहित होकर, शस्त्र - मूसल आदि का वर्जन कर अकेले, सहाय्य - निरपेक्ष होकर दर्भ-संस्तारक पर पाक्षिक पौषध की प्रतिजागरणा करते हुए विहार किया। देवानुप्रिय ! तुमने हमारी बहुत अवहेलना की । १९. आर्यो ! इस संबोधन से संबोधित कर श्रमण भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! तुम श्रमणोपासक शंख की अवहेलना, निंदा, भर्त्सना, गर्हा, और अवज्ञा मत करो । श्रमणोपासक शंख प्रियधर्मा है - दृढ़धर्मा है, उसने सुदृढ़ जागरिका की है। २०. भंते ! इस सम्बोधन से संबोधन कर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वंदन- नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भंते ! जागरिका कितने प्रकार की प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जागरिका तीन प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे- बुद्ध - जागरिका, अबुद्ध जागरिका और सुदृढ़ - जागरिका । ४४६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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