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________________ श. २० : उ. ८,९ : सू. ७५-८२ भगवती सूत्र स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अंतकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत, दृष्टिवाद। उग्र-आदि का निर्गथ-धर्म-अनुगमन-पद ७६. भंते! ये उग्र, भोज, राजन्य, इक्ष्वाकु, नाग, कौरव-ये इस धर्म में अवगाहन कर आठ प्रकार के कर्म के रज-मल को धोते हैं, धोकर उसके पश्चात् सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं? हां, गौतम! जो ये उग्र, भोज, राजन्य, इक्ष्वाकु, नाग, कौरव-ये इस धर्म में अवगाहन करते हैं, आठ प्रकार के कर्म के रज-मल को धोते हैं, धोकर उसके पश्चात् सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अंत करते हैं, कुछ किसी देवलोक में देव रूप में उपपन्न होते हैं। ७७. भंते! देवलोक कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! देवलोक चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-भवनवासी, वाणमंतर ज्योतिष्क, वैमानिक । ७८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। नवां उद्देशक करण-पद ७९. भंते! चारण कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? __ गौतम! चारण दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे विद्याचारण, जंघाचारण। ८०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-विद्याचारण विद्याचारण है? गौतम! निरंतर बेले-बेले तप करने वाले तथा विद्या के द्वारा उत्तरगुण-लब्धि में सामर्थ्य प्राप्त करने वाले के विद्याचारण-लब्धि नामक लब्धि समुत्पन्न होती है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-विद्याचारण विद्याचारण है। ८१. भंते! विद्याचारण की शीघ्र गति कैसी होती है? उसका शीघ्र गति-विषय कितना प्रज्ञप्त गौतम! इस जंबूद्वीप द्वीप में यावत् उसका परिक्षेप तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़ा तेरह अंगुल से कुछ अधिक प्रज्ञप्त है। महर्द्धिक देव यावत् महा ऐश्वर्यशाली यावत् 'यह रहा, यह रहा', इस प्रकार कह कर संपूर्ण जंबूद्वीप द्वीप में तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में तीन बार घूम कर शीघ्र ही आ जाता है। गौतम! विद्याचारण की वैसी शीघ्र गति है, वैसा शीघ्र गति-विषय प्रज्ञप्त है। ८२. भंते! विद्याचारण का तिर्यग्-गति-विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! वह जंबूद्वीप द्वीप से एक उड़ान में मानुषोत्तर पर्वत में समवसरण करता है, समवसरण कर वहां चैत्यों का वंदन करता है, वंदन कर दूसरी उड़ान में नंदीश्वर-द्वीप में ६९२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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