SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. २० : उ. ८ : सू. ६८-७५ ६८. भंते! इन चाबीस तीर्थंकरों में कितने जिनान्तर प्रज्ञप्त हैं? गौतम! तेईस जिनान्तर प्रज्ञप्त हैं। जिनान्तरों में कालिक-श्रुत-पद ६९. भंते! इन तेईस जिनान्तरों में किस जिनान्तर में कब कालिक-श्रुत का व्यवच्छेद प्रज्ञप्त गौतम! इन तेईस जिनान्तरों में पूर्व के आठ और अंतिम के आठ जिनान्तरों में कालिक-श्रुत का अव्यवच्छेद प्रज्ञप्त है। मध्यवर्ती सात जिनान्तरों में कालिक-श्रुत का व्यवच्छेद प्रज्ञप्त है। दृष्टिवाद का विच्छेद सर्वत्र प्रज्ञप्त है। पूर्वगत-पद ७०. भंते! जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इसी अवसर्पिणी में देवानुप्रिय के शासन का पूर्वगत-श्रुत कितने काल तक रहेगा? गौतम! जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इसी अवसर्पिणी में मेरे शासन का पूर्वगत-श्रुत एक हजार वर्ष तक रहेगा। ७१. भंते! जैसे जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इसी अवसर्पिणी में देवानुप्रिय के शासन का पूर्वगत-श्रुत एक हजार वर्ष तक रहेगा, भंते! वैसे जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में अन्य तीर्थंकरों के शासन का पूर्वगत-श्रुत कितने काल तक रहा? गौतम! कुछ का संख्येय काल और कुछ का असंख्येय काल रहा। तीर्थ-पद ७२. भंते! जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इस अवसर्पिणी में देवानुप्रिय का तीर्थ कितने काल तक रहेगा? गौतम! जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इस अवसर्पिणी में मेरा तीर्थ इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा। ७३. भंते! जैसे जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इस अवसर्पिणी में देवानुप्रिय का तीर्थ इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा। भंते! वैसे जंबूद्वीप द्वीप में आगामी चरम तीर्थंकर (चौबीसवें तीर्थंकर) का तीर्थ कितने काल तक रहेगा? गौतम! कौशलिक अर्हत् ऋषभ का जितना जिन-पर्याय है, उतने संख्येय काल तक आगामी चरम तीर्थंकर का तीर्थ रहेगा। ७४. भंते! तीर्थ तीर्थ है? तीर्थंकर तीर्थ है? गौतम! अर्हत् नियमतः तीर्थंकर हैं। तीर्थ चातुर्वर्ण धर्मसंघ है, जैसे-श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका। ७५. भंते! प्रवचन प्रवचन है? प्रावचनी (प्रवचनकार) प्रवचन है? गौतम! अर्हत् नियमतः प्रावचनी हैं। प्रवचन द्वादशांग गणिपिटक हैं, जैसे-आचार, सूत्रकृत, ६९१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy