SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्नीसवां शतक पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा १. लेश्या, २. गर्भ, ३. पृथ्वी, ४. महासव, ५. चरम, ६. दीप, ७. भवन, ८. निवृत्ति, ९. करण, १०. वनचर-देव-उन्नीसवें शतक में ये दस उद्देशक हैं। लेश्या-पद १. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! लेश्याएं कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! छह लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे-इस प्रकार पण्णवणा की भांति चौथा लेश्या-उद्देशक (पण्णवणा, १७/११४-१४४) निरवशेष वक्तव्य है। २. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। दूसरा उद्देशक ३. भंते! (मनुष्य गर्भ में) लेश्याएं कितनी प्रज्ञप्त हैं? इस प्रकार पण्णवणा के गर्भ-उद्देशक (पण्णवणा, १७/१६६-१७२) की भांति पूर्ववत् निरवशेष वक्तव्य है। ४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। तीसरा उद्देशक पृथ्वीकायिक-पद ५. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! (दो-तीन) यावत् चार-पांच पृथ्वीकायिक-जीव एकत्र होकर साधारण-शरीर का निर्माण करते हैं, निर्माण कर उसके पश्चात् आहार करते हैं, उसका परिणमन करते हैं, शरीर का विशिष्ट निर्माण अथवा पोषण करते हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। पृथ्वीकायिक-जीव प्रत्येक आहार करने वाले स्वतंत्र आहार करने वाले, परिणाम वाले स्वतंत्र परिणमन करने वाले हैं और वे अपने-अपने शरीर का निर्माण करते हैं। निर्माण कर उसके पश्चात् आहार करते हैं, उसका परिणमन करते हैं, शरीर का विशिष्ट निर्माण अथवा पोषण करते हैं। ६५९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy