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________________ श. १८ : उ. ३ : सू. ६८-७४ भगवती सूत्र अथवा नहीं जानते, नहीं देखते हैं, आहरण नहीं करते? माकंदिक पुत्र! नैरयिक उन निर्जरा-पुद्गलों को नहीं जानते, नहीं देखते हैं, उनका आहरण नहीं करते। इसी प्रकार यावत् पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक की वक्तव्यता। ६९. भंते! मनुष्य उन निर्जरा-पुद्गलों को जानते-देखते हैं, उनका आहरण करते हैं अथवा नहीं जानते, नहीं देखते, नहीं उनका आहरण करते है। माकन्दिक-पुत्र! कुछ जानते-देखते हैं, उनका आहरण करते हैं। कुछ नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। ७०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कुछ जानते-देखते हैं, उनका आहरण करते हैं? कुछ नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं? माकन्दिक-पुत्र! मनुष्य दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसे संज्ञीभूत, असंज्ञीभूत। उनमें जो असंज्ञीभूत हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। जो संज्ञीभूत हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-उपयुक्त, अनुपयुक्त। उनमें जो अनुपयुक्त हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। जो उपयुक्त हैं, वे जानते-देखते हैं, आहरण करते हैं। माकन्दिक-पुत्र! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कुछ नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। कुछ जानते-देखते हैं, आहरण करते हैं। वाणमंतर, ज्योतिष्क की वैमानिक की भांति वक्तव्यता। ७१. भंते! वैमानिक उन निर्जरा-पुद्गलों को जानते-देखते हैं, आहरण करते हैं? माकन्दिक-पुत्र! वैमानिक की मनुष्यों की भांति वक्तव्यता। इतना विशेष है-वैमानिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त है, जैसे–मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपन्नक, अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक। जो मायी-मिथ्यादृष्टि-उपपन्नक हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। उनमें जो अमायी-सम्यग्दृष्टि-उपपन्नक हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अनन्तर-उपन्नक, परंपर-उपपन्नक। जो अनंतर-उपपन्नक हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण नहीं करते। जो परम्पर-उपपन्नक हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पर्याप्त, अपर्याप्तक। जो अपर्याप्तक हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, उनका आहरण करते हैं। जो पर्याप्तक हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-उपयुक्त, अनुपयुक्त। उनमें जो अनुपयुक्त हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। जो उपयुक्त हैं, वे जानते-देखते हैं, आहरण करते हैं। माकंदिक-पुत्र! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कुछ नहीं जानते, नहीं देखते, आहरण करते हैं। कुछ जानते-देखते हैं, आहरण करते हैं। बंध-पद ७२. भंते! बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? माकंदिक-पुत्र! बंध दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य-बंध, भाव-बंध। ७३. भंते ! द्रव्य-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? ___ माकंदिक-पुत्र! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है-प्रयोग-बंध, विस्रसा-बंध। ७४. भंते! विस्रसा-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? ६३६
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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