SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. १९८ : उ. १ : सू. ९-१५ की ९. भवसिद्धिक के एकत्व - बहुत्व की आहारक की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार की वक्तव्यता । भंते! नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक-जीव नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक-भाव से - पृच्छा । अभवसिद्धिक गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है। भंते! नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक- सिद्ध की नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक-भाव से - पृच्छा । इस प्रकार बहुवचन के द्वारा दोनों की वक्तव्यता । १०. भंते! क्या संज्ञी - जीव संज्ञी-भाव से प्रथम हैं - पृच्छा । गौतम ! प्रथम नहीं है, अप्रथम है। इसी प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिक की वक्तव्यता । इसी प्रकार बहुवचन की भी वक्तव्यता । इसी प्रकार असंज्ञी के एकत्व - - बहुत्व की वक्तव्यता, इतना विशेष है - यावत् वाणमंतर। नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी - जीव मनुष्य, सिद्ध प्रथम है, अप्रथम नहीं है। इसी प्रकार बहुवचन की भी वक्तव्यता । ११. भंते! सलेश्य की पृच्छा । गौतम ! आहारक की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार बहुवचन की भी वक्तव्यता । इसी प्रकार कृष्ण-लेश्या वाले यावत् शुक्ल-लेश्या वाले की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसके जो लेश्या है। अलेश्य-जीव मनुष्य सिद्ध की नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी की भांति वक्तव्यता । १२. भंते! सम्यग् -दृष्टि-जीव क्या सम्यग् - दृष्टि भाव से प्रथम है - पृच्छा । गौतम ! स्यात् प्रथम है, स्यात् अप्रथम है । इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिक की वक्तव्यता । सिद्ध प्रथम है, अप्रथम नहीं हैं । बहुवचन से सम्यग् - दृष्टि जीव प्रथम भी हैं, अप्रथम भी हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता । सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। मिथ्या-दृष्टि एकत्व - बहुत्व की आहारक की भांति वक्तव्यता । सम्यग् - मिथ्या-दृष्टि की एकत्व - बहुत्व की सम्यग् दृष्टि की भांति वक्तव्यता । सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि की एकत्व-बहुत्व। की सम्यग्दृष्टि की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसके सम्यग् - - मिथ्यात्व है । १३. संयत जीव मनुष्य के एकत्व - बहुत्व की सम्यग्दृष्टि की भांति वक्तव्यता। असंयत की आहारक की भांति वक्तव्यता । संयतासंयत-जीव पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक मनुष्य के एकत्व-बहुत्व की सम्यग्-दृष्टि की भांति वक्तव्यता । नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत-जीव, सिद्ध एकत्व-बहुत्व में प्रथम हैं, अप्रथम नहीं है । १४. सकषायी क्रोध- कषायी यावत् लोभ- कषायी - इनके एकत्व - बहुत्व की आहारक की भांति वक्तव्यता। सकषायी जीव स्यात् प्रथम है, स्यात् अप्रथम है। इसी प्रकार मनुष्य की भी वक्तव्यता। सिद्ध प्रथम है, अप्रथम नहीं है । बहुवचन में मनुष्य जीव प्रथम भी हैं, अप्रथम भी हैं। सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। १५. ज्ञानी के एकत्व - बहुत्व की सम्यग् - दृष्टि की भांति वक्तव्यता । आभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मनःपर्यव-ज्ञानी की एकत्व - बहुत्व में पूर्ववत् वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसके जो है । केवल - ज्ञानी जीव, मनुष्य, सिद्ध एकत्व - बहुत्व में प्रथम है, अप्रथम नहीं है। अज्ञानी, ६२८
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy