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________________ भगवती सूत्र श. १७ : उ. ३,४ : सू. ४७-५४ कहा जा रहा है - यावत् मन योग- चलना है। इसी प्रकार वचन - योग- चलना की, इसी प्रकार काय-योग- चलना की वक्तव्यता । संवेग-आदि-पद ४८. भंते! संवेग, निर्वेद, गुरु-साधर्मिक-शुश्रूषा, आलोचना, निंदा, गर्हा, क्षमापना, व्यवशमन, श्रुत सहायता, भाव - अप्रतिबद्धता, विनिवर्तन, विविक्तशयनासनसेवा, श्रोत्रेन्द्रिय-संवर यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-संवर, योग-प्रत्याख्यान, शरीर- प्रत्याख्यान, कषाय- प्रत्याख्यान संभोज - प्रत्याख्यान, उपधि-प्रत्याख्यान, भक्त - प्रत्याख्यान, क्षमा, विराग, योग-सत्य, करण- सत्य, मन-समन्वाहरण, वचन-समन्वाहरण, काय-समन्वाहरण, क्रोध-विवेक यावत् मिथ्या दर्शन - शल्य-विवेक, ज्ञान- संपन्न, दर्शन-संपन्न, चरित्र - संपन्न, वेदना - अधिसहन, मारणान्तिक- अधिसहन - इनका पर्यवसान फल क्या प्रज्ञप्त है, आयुष्मन् श्रमण ! भाव-सत्य, गौतम ! संवेग, निर्वेद यावत् मारणान्तिक - अधिसहन का पर्यवसान फल सिद्धि प्रज्ञप्त है आयुष्मन् श्रमण ! ४९. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । यावत् विहरण करने लगे । चौथा उद्देश क्रिया-पद ५०. उस काल और उस समय में राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा- भंते! क्या जीवों के प्राणातिपात क्रिया होती है ? हां, होती है । ५१. भंते! क्या वह स्पृष्ट होती है ? अस्पृष्ट होती है ? गौतम ! वह स्पृष्ट होती है, अस्पृष्ट नहीं होती यावत् व्याघात न होने पर छहों दिशाओं में, व्याघात होने पर स्यात् तीन, स्यात् चार, स्यात् पांच दिशाओं में होती है। ५२. भंते! क्या वह कृत होती है? अकृत होती है ? गौतम ! वह कृत होती है, अकृत नहीं होती । ५३. भंते! क्या वह आत्म-कृत होती है ? पर-कृत होती है ? उभय-कृत होती है ? गौतम ! वह आत्म-कृत होती है। पर-कृत नहीं होती । उभय-कृत भी नहीं होती । ५४. भंते! क्या वह आनुपूर्वी कृत होती है ? अनानुपूर्वी कृत होती है ? - गौतम ! आनुपूर्वी - कृत होती है, अनानुपूर्वी कृत नहीं होती। जो क्रिया की गई है, जो की - जा रही है, जो की जाएगी, वह सर्व आनुपूर्वी कृत है, जा सकता है। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता, के व्याघात न होने पर छहों दिशाओं में, व्याघात होने स्यात् पांच दिशाओं में। शेष का नियम छह दिशाओं में है । अनानुपूर्वी कृत नहीं, ऐसा कहा इतना विशेष है - एकेन्द्रिय-जीवों पर स्यात् तीन, स्यात् चार और ६२१
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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