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________________ भगवती सूत्र श. १७ : उ. २ : सू. २५-३० श्रमणोपासक बाल-पंडित ह, जिसने एक प्राणी का वध भी त्यागा नहीं है, वह एकान्त बाल है-ऐसा वक्तव्य है। २६. भंते ! यह इस प्रकार कैसे है? गौतम! अन्ययूथिक जो इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् एकान्त बाल है, ऐसा वक्तव्य है जो ऐसा कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान करता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं श्रमण पंडित हैं, श्रमणोपासक बाल-पंडित हैं, जिसने एक प्राणी का भी वध त्यागा है, वह एकांत बाल नहीं है, ऐसा वक्तव्य है। २७. भंते! क्या जीव बाल हैं? पंडित हैं? बाल-पंडित हैं? गौतम! जीव बाल भी हैं, पंडित भी हैं, बाल-पंडित भी हैं। २८. नैरयिकों की पृच्छा। गौतम! नैरयिक बाल हैं, पंडित नहीं हैं, बाल-पंडित नहीं हैं। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता। २९. पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की पृच्छा। गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक बाल हैं, पंडित नहीं हैं, बाल-पंडित भी हैं, मनुष्यों की जीवों की भांति वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं। जीव-जीवात्मा एकत्व-पद ३०. भंते! अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करते हैं-प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। प्राणातिपात-विरमण यावत् परिग्रह-विरमण, क्रोध-विवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। औत्पत्तिकी-, वैनयिकी-, कार्मिकी और पारिणामिकी-बुद्धि में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। अवग्रह, ईहा, अपाय और धारणा में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। नैरयिकत्व, तिर्यक्, मनुष्य और देवत्व में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। ज्ञानावरणीय यावत् अंतराय में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। इसी प्रकार कृष्ण-लेश्या यावत् शुक्ल-लेश्या में, सम्यग्-दृष्टि, मिथ्या-दृष्टि और सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि में, इसी प्रकार चक्षु-दर्शन, अचक्षु-दर्शन, अवधि-दर्शन, केवल-दर्शन में, आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि-ज्ञान, मनःपर्यव-ज्ञान और केवल-ज्ञान में, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंग-ज्ञान में, आहार-संज्ञा, भय-संज्ञा, मैथुन-संज्ञा और परिग्रह-संज्ञा में, इसी प्रकार औदारिक-शरीर, वैक्रिय-शरीर, आहारक-शरीर, तैजस-शरीर और कार्मण-शरीर में, इसी प्रकार मन-योग, वचन-योग और काय-योग में, साकार-उपयोग और अनाकार-उपयोग में वर्तमान है उसका जीव अन्य है, जीवात्मा अन्य है। ६१७
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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