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________________ भगवती सूत्र श. १६ : उ. १ : सू. १५-२५ १५. भंते! जीवों का अधिकरण क्या आत्म-प्रयोग से निष्पन्न होता है ? पर प्रयोग से निष्पन्न होता है ? तदुभय-प्रयोग से निष्पन्न होता है ? गौतम ! जीवों का अधिकरण आत्म प्रयोग से निष्पन्न भी है, पर प्रयोग से निष्पन्न भी है, तदुभय-प्रयोग से निष्पन्न भी है। १६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है ? गौतम! अविरति की अपेक्षा । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् तदुभय-प्रयोग निष्पन्न भी है। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता । १७. भंते! शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! शरीर पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे- औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । १८. भंते! इन्द्रियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! इन्द्रियां पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे- श्रोत्र - इन्द्रिय, चक्षु-इन्द्रिय, घ्राण-इन्द्रिय, रसन-इन्द्रिय, स्पर्श - इन्द्रिय । १९. भंते! योग के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! योग के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - मन- योग, वचन-योग, काय - योग । २०. भंते! जीव औदारिक- शरीर को निष्पन्न करता हुआ क्या अधिकरणी है ? अधिकरण है ? गौतम ! अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है । २१. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव अधिकरणी भी है ? अधिकरण भी है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा । इस अपेक्षा से यावत् अधिकरण भी है। २२. भंते! पृथ्वीकायिक-जीव औदारिक शरीर को निष्पन्न करता हुआ क्या अधिकरणी है ? अधिकरण है ? पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् मनुष्य की वक्तव्यता । इसी प्रकार वैक्रिय शरीर की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसके वह शरीर है। २३. भंते! जीव आहारक - शरीर को निष्पन्न करता हुआ क्या अधिकरणी है ? – पृच्छा । गौतम ! अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है । २४. यह किस अपेक्षा से यावत् अधिकरण भी है ? गौतम ! प्रमाद की अपेक्षा । इस अपेक्षा से यावत् अधिकरण भी है। इसी प्रकार मनुष्य की वक्तव्यता । तैजस - शरीर की औदारिक- शरीर की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है - वह सर्व जीवों के वक्तव्य । इसी प्रकार कर्म शरीर की वक्तव्यता । २५. भंते! जीव श्रोत्रेन्द्रिय को निष्पन्न करता हुआ क्या अधिकरणी है ? अधिकरण है ? इस प्रकार जैसे - औदारिक शरीर की वक्तव्यता वैसे ही श्रोत्रेन्द्रिय की वक्तव्यता, इतना विशेष है-जिसके श्रोत्रेन्द्रिय है । इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिस जीव के जितनी इन्द्रियां हैं। ५९२
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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