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________________ भगवती सूत्र श. १५ : सू. १८६-१९० तदनन्तर वह जीव वहां से इसी प्रकार जैसे सनत्कुमार में वैसे ही ब्रह्मलोक में, महाशुक्र में, आनत में, आरण में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर मनुष्य-शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार-धर्म से अनगार-धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना न कर कालमास में काल को प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध-महाविमान में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर महाविदेह वर्ष में जो ये कुल हैं आढ्य यावत् अपरिभूत, उन कुलों में पुत्रत्व के रूप में जन्म लेगा, इसी प्रकार जैसी उववाई (सू. १४१) में दृढ़प्रतिज्ञ की वक्तव्यता है वही वक्तव्यता अविकल रूप से बतलानी चाहिए यावत् उत्तम केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन को प्राप्त करेगा। १८७. उसके पश्चात् वह दृढ़प्रतिज्ञ केवली अपना अतीतकाल देखेगा, देख कर श्रमण-निग्रंथों को बुलाएगा, बुला कर इस प्रकार कहेगा–आर्यो! मैं ही निश्चित चिर अतीत काल में गोशाल नामक मंखलिपुत्र था श्रमण-घातक यावत् छद्मस्थ-अवस्था में ही काल को प्राप्त किया था, आर्यो! उसके फलस्वरूप मैंने (गोशाल के जीव ने) आदि-अन्त-हीन दीर्घपथ वाले चतुर्गत्यात्मक संसार-कान्तार में पर्यटन किया, इसलिए आर्यो! तुम में से कोई आचार्य का प्रत्यनीक, उपाध्याय का प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय का अयशकारक, अवर्णकारक और अकीर्तिकारक मत बनना, और इस प्रकार आदि-अन्त-हीन दीर्घपथ वाले चतुर्गत्यात्मक संसार-कान्तार में पर्यटन मत करना, जैसे कि मैंने (किया)। १८८. उसके पश्चात् वे श्रमण-निग्रंथ दृढ़प्रतिज्ञ केवली के पास इस अर्थ को सुनकर और अवधारण कर भीत, त्रस्त, तृषित और संसार के भय से उद्विघ्न होकर, दृढ़प्रतिज्ञ केवली को वन्दन करेंगे, नमस्कार करेंगे, वन्दन-नमस्कार कर उस स्थान की आलोचना करेंगे, प्रतिक्रमण करेंगे, निन्दा करेंगे यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त तपःकर्म को स्वीकार करेंगे। १८९. वह दृढ़प्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवली-पर्याय को प्राप्त करेंगे, प्राप्त कर अपनी आयु का अन्त निकट जान कर भक्त-प्रत्याख्यान करेंगे-अनशन स्वीकार करेंगे, इस प्रकार जैसा उववाई (सू. १५४) में बतलाया गया है वैसा यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे, तक बतलाना चाहिए। १९०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है यावत् विहरण कर रहे हैं। ५८९
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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