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________________ श. १५ : सू. १८६ भगवती सूत्र जम्बूद्वीप में भारत-वर्ष के अन्दर विन्ध्यगिरि की तलहटी में स्थित बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मण-कुल में पुत्री के रूप में उत्पन्न होगा। तत्पश्चात् वह कन्या (माता-पिता के द्वारा) क्रमशः उन्मुक्त बालभाव एवं यौवन को प्राप्त कर उचित कन्यादान के साथ विनयपूर्वक योग्य पति के साथ पत्नी के रूप में विवाहित की जाएगी। वह कन्या उस पति की इष्ट, कान्त यावत् अनुमत पत्नी बनेगी; वह आभरण-करण्डक के समान आदेय बनेगी; वह तेल के पात्र जैसी समुचित रूप में रक्षणीय होगी, वह वस्त्र की मंजूषा की तरह समुचित रूप में उपद्रव-रहित स्थान में गृहीत और निवेशित होगी, वह आभरण-करण्डक की भांति सुसंरक्षित और सुसंगोपित होती हुई, 'इसे सर्दी न लगे, गर्मी न लगे यावत् परीषह और उपसर्ग इसका स्पर्श न करे' (इस अभिसन्धि से पालित होगी।) तब वह दारा अन्य समय में गर्भिणी होकर श्वसुर कुल से अपने पीहर जाती हुई बीच में दवाग्नि की ज्वाला से अभिहत होती हुई कालमास में काल को प्राप्त कर दाक्षिणात्य अग्निकुमार-देवों में देव के रूप में उपपन्न होगी। तदनन्तर वह जीव वहां से उवृत्त होकर मनुष्य-शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार-धर्म से अनगार-धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना कर कालमास में काल को प्राप्तकर दाक्षिणात्य असुरकुमार-देवों में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से मर कर मनुष्य-शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्तकर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार-धर्म से अनगार-धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना कर कालमास में काल को प्राप्तकर दाक्षिणात्य नागकुमार-देवों में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से इस प्रकार अभिलाप से दाक्षिणात्य सपर्णकमार-देवों में. इसी प्रकार विद्युत्कुमार-देवों में, इसी प्रकार अग्निकुमार-देवों को छोड़कर यावत् दाक्षिणात्य स्तनितकुमार-देवों में (देव के रूप में उपपन्न होगा)। तदनन्तर वह जीव वहां से मर कर मनुष्य-शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार-धर्म से अनगार-धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना कर ज्योतिष्क-देवों में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा, प्राप्त कर सम्पूर्ण बोधि का अनुभव करेगा, अनुभव कर मुंड होकर अगार-धर्म से अनगार-धर्म में प्रव्रजित होगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना न कर कालमास में काल को प्राप्त कर सौधर्मकल्प में देव के रूप में उपपन्न होगा। तदनन्तर वह जीव वहां से च्यवन कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करेगा। वहां पर भी श्रामण्य की विराधना न कर कालमास में काल को प्राप्त कर सनत्कुमार-कल्प में देव के रूप में उपपन्न होगा। ५८८
SR No.032417
Book TitleBhagwati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages590
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size15 MB
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