SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. १ : उ. ३ : सू. १२४-१३३ भगवती सूत्र १२४. भन्ते! क्या उन्होंने १. देश के द्वारा देश किया था? २. देश के द्वारा सर्व किया था? ३. सर्व के द्वारा देश किया था? ४. सर्व के द्वारा सर्व किया था? गौतम! उन्होंने १. देश के द्वारा देश नहीं किया। २. देश के द्वारा सर्व नहीं किया। ३. सर्व के द्वारा देश नहीं किया। ४. सर्व के द्वारा सर्व किया था। १२५. इस अभिलाप (पाठ-पद्धति) द्वारा वैमानिकों तक सभी दण्डक वक्तव्य हैं। १२६. इसी प्रकार (वर्तमान में जीव कांक्षामोहनीय-कर्म) करते हैं। यहां भी वैमानिकों तक सभी दण्डक वक्तव्य हैं। १२७. इसी प्रकार (भविष्य में जीव कांक्षामोहनीय-कर्म) करेंगे। यहां भी वैमानिकों तक सभी दण्डक वक्तव्य हैं। १२८. इसी प्रकार चित है, चय किया था, चय करते हैं और चय करेंगे। उपचित है, उपचय किया था, उपचय करते हैं और उपचय करेंगे। उदीरणा की थी, उदीरणा करते हैं और उदीरणा करेंगे। वेदन किया था, वेदन करते हैं और वेदन करेंगे। निर्जरण किया था, निर्जरण करते हैं और निर्जरण करेंगे। संग्रहणी गाथा कृत, चित, उपचित, उदीरित, वेदित और निर्जीर्ण-ये छह प्रकार हैं। इनमें प्रथम तीन के चार चार भेद हैं और शेष तीन के तीन-तीन भेद हैं। १२९. भन्ते! क्या जीव कांक्षामोहनीय-कर्म का वेदन करते हैं? हां, करते हैं। १३०. भन्ते! जीव कांक्षामोहनीय-कर्म का वेदन कैसे करते हैं? गौतम! उन-उन कारणों से जीव शंकित, कांक्षित, विचिकित्सित, भेद-समापन्न, कलुषसमापन्न हो जाते हैं। इस प्रकार जीव कांक्षामोहनीय-कर्म का वेदन करते हैं। श्रद्धा-पद १३१. भन्ते! क्या वही सत्य और निःशंक है, जो जिनों (अर्हतों) द्वारा प्रवेदित है? हां, गौतम! वही सत्य और निःशंक है, जो जिनों द्वारा प्रवेदित है। १३२. भन्ते! क्या (जिनों द्वारा प्रवेदित है, वही सत्य और निःशंक है) इस प्रकार के मन को धारण करता हुआ, उत्पन्न करता हुआ, इस प्रकार की चेष्टा करता हुआ, इस प्रकार मन का संवर करता हुआ आज्ञा का आराधक होता है? हां, गौतम! इस प्रकार के मन को धारण करता हुआ, उत्पन्न करता हुआ, इस प्रकार का चेष्टा करता हुआ, इस प्रकार मन का संवर करता हुआ आज्ञा का आराधक होता है। अस्ति-नास्ति-पद १३३. भन्ते! क्या अस्तित्व अस्तित्व में (उत्पाद-पर्याय उत्पाद-पर्याय में) परिणत होता है? नास्तित्व नास्तित्व में (व्यय-पर्याय व्यय पर्याय में) परिणत होता है? १८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy