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________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति · ३१२ ३४८-४६३, ४ - बंध ३४६ | ३ सर्व काल ३१३ ३५३ २ (३/२५३) सादिक विनसा शरीर बंध ४ ३१४ ३६३ २ ३१४ ३६५ | ३१५ ३६८ । ५ ३६६ २ ३७० ** . . . . . . . ........ . . . . . . .. ३७१ ३७२ ३७४ ३७६ ३८० ३८१ ३८२ ३ ३८२ २ ' ३ २ २ ? १ २ , 9 २ ३. ४ १ जिनके २ औदारिक- शरीर के ४ ४ तैजस और कार्मण शरीर ५ अशुद्ध ( २१ / ३२० ) तीन भंते! एकन्द्रिय है? औदारिक ३७८ १ - औदारिक- शरीर प्रयोग-बंध की। (-औदारिक- शरीर प्रयोग बंध की ) 1 ६-७ चाहिए। चाहिए। जिनके -बंध त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय प्रयोग-बंध औदारिक की भांति तीन औदारिक की भांति वक्तव्यता, इसी पृथ्वीकायिक यावत् है? इसी प्रकार ( औदारिक की भांति की भांति) -बंध की वक्तव्यता यावत् वनस्पति-बंध, इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक कायिक (-बंध) इस प्रकार त्रीन्द्रिय और इस प्रकार -शरीर के बंध के अंतर की एकेन्द्रिय शरीर के - औदारिक -बंध भी सर्वकाल एकेन्द्रिय की वक्तव्यता है, चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता, -शरीर के बंध के अंतर की एकेन्द्रिय (म. ३ / २५३ ) सादिक-विवसा की भांति पंचेन्द्रिय वक्तव्य है शरीर बंध तेजस और कार्मण शरीर ( २१/३-२० ) (तीन) भंते! एकेन्द्रिय शुद्ध चतुरिन्द्रिय ( प्रयोग बंध) इसी प्रकार ( औदारिक की भांति) (तीन) इसी प्रकार ( औदारिक की भांति) वक्तव्यता। इस पृथ्वीकायिक ( - औदारिक-शरीर-प्रयोग-बंध) (वक्तव्य है), इस प्रकार याव ( औदारिक- शरीर के) ( शरीर के बंध के अंतर की) (एकेन्द्रिय शरीर के) (- औदारिक-) अन्तर की अन्तर की ) अन्तर एकेन्द्रिय की भांति वक्तव्य अन्तर जैसा एकेन्द्रिय का (उक्त है) वैसा ही वक्तव्य (एकेन्द्रियों) की (वक्तव्यता है), चतुरिन्द्रियों की (वक्तव्यता), (- शरीर के बंध के अंतर की) जैसा एकेन्द्रिय का (उक्त है) वैसा (वक्तव्य है), का भी निरवशेष रूप में वक्तव्य है, का भी निरवशेष रूप में वक्तव्यता है, पृष्ठ सूत्र पंक्ति ३१७ ३८३ RR ३१८ ३१६ ... ३१७ ३८४ ८६ जैसे— पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय- की 2. 7211. 8. 9. g... ३२० ३२० ३८४ ३८६ ३८५ ३ ४ २ ४ ३८७ ३८८ ३८६ ३६० ३६१ ३६२ ३६२ | 20 MON ३६४ ३६५ ३६१ ३ ४०० वक्तव्यता है, - वर्जित यावत् मनुष्य की वक्तव्यता ६-१० बनस्पतिकायिक के सर्व-बंध का २ " ३ २ ७ २ " १ ३ -हजार सागरोपम नो- पृथ्वीकायिक ६ ७ अशुद्ध ३ अंतर हैं। अबंधक विशेषाधिक हैं। -बंधक वैक्रिय- शरीर प्रयोग बंध है यावत् वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध के तीन वायुकायिक तान रत्नप्रभातीन तिर्यग्योनिक -वध वायुकायिक नैरयिक स्तनितकुमार वानव्यंतर और ज्योतिष्क वैमानिक ५-६ चाहिए। - वैमानिक और शरीर -बंध -नैरयिक यावत् - तिर्यग्योनिक वायुकायिक की भांति वक्तव्यताः असुरकुमार, नागकुमार यावत् नैरयिक की भांति वक्तव्यता, २६६-६६ सर्वत्र बंध के अंतर की वक्तव्यता । -नैरयिक से नो-रत्नप्रभा ४०० १ २ मैं जन्म लेता है। उस अंतर की पृच्छा -वैक्रिय शरीर कालमान अधः सप्तमी पंचेन्द्रिय ( २६ ) शुद्ध -हजार-सागरोपम नोपृथ्वीकायिक जैसे पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रियों) की (वक्तव्यता है), वर्जितों यावत् मनुष्यों की (वक्तव्यता), बनस्पतिकायिकों के (सर्व-बंध का अंतर) है, अबंधक उनसे विशेषाधिक हैं, -बंधक उनसे (वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध) है ( पण्णवणा, २१ / ५०-५५) यावत् (वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध के तीन ) (वायुकायिक तीन ) (रत्नप्रभा तीन) (तिर्यग्योनिक - बंध) वायुकायिकों नैरयिकों स्तनितकुमार (वक्तव्य हैं)। इस प्रकार वानमंतर ( वक्तव्य हैं)। इस प्रकार ज्योतिष्क वैमानिक ( वक्तव्य हैं)। इस प्रकार यावत् - वैमानिक (वक्तव्य हैं)। इसी प्रकार शरीर -बंध भी -नैरयिक भी (वक्तव्य हैं) इसी प्रकार यावत् -वैक्रिय (-शरीर कालमान की) अधः सप्तमी ( - पृथ्वी....... बंध का कालमान) चाहिए। पंचेन्द्रिय - तिर्यग्योनिकों वायुकायिकों की भांति (वक्तव्यता)। असुरकुमार, नागकुमार- यावत् नैरयिकों की भांति (वक्तव्यता), -बंध का अंतर भी ( वक्तव्य है)। -नैरयिक के रूप से नोरत्नप्रभा के रूप में जन्म लेता है ( उस अंतर की) - पृच्छा। पृष्ठ सूत्र पंक्ति ३२० 、、、、、、、、、 ** W ४०५ ३२१ ४०६ ३२२ ४०१ ३२२ • • • ४०७ ४१० ४११ ४१२ ४१३ ४१३ ४१५ ४१६ ४१६ ४१८ www .... ४०२ , ४०३ ४०४ वक्तव्यता, ८६ वक्तव्य है। ४२४ ४२५-३० तीनोंबार २ १ -देव " ४ ३ ४ २ १ ४ ५. ३ ३२२ ४१४ २ ७ २ ४ ३ ४ २ * २ " " ४१८ २ ४२०-२१ ४२२ २ ३ पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक मनुष्य वायुकायिक की भांति वक्तव्य हैं। असुरकुमार नागकुमार -देव नैरयिक की भाँति वक्तव्य हैं, अशुद्ध है। उस अंतर की पृच्छा 61 वक्तव्यता -कल्पातीत -जीव देशबंधक अबधक आहारक- शरीर प्रयोग-बंध यदि - सम्यक् दृष्टि, पर्याप्तक-सम्यकदृष्टि तीन के अंतर बंधक अबंधक तेजस शरीर प्रयोग-बंध के भेद (पद २१) तीन ह? तेजसअपेक्षा है? -बंधक कर्म - शरीर- प्रयोग बंध सात है अवगाहन संस्थान नामक पण्णवणा पण्णवणा के अवगाहन संस्थान (पद २१) नामक पद (२१/७२ ) में जैसा (उक्त है वैसा वक्तव्य है) -सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक- सम्यग् -दृष्टि(तीन) का अंतर भी बंधक उनसे अबंधक उनसे (तेजस शरीर प्रयोग-बंध) का भेद अनुकंपा अनेक सात पांच (वक्तव्यता), ( वक्तव्य है)। पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों शुद्ध मनुष्यों की वायुकायिकों की भांति (वक्तव्यता)। असुरकुमारी नागकुमारों - देवों इनकी ( वक्तव्यता) नेरयिकों की भांति है, -देव के रूप है ( उस अंतर की) - पृच्छा। हा (वक्तव्यता) -कल्पातीतों -जीवों देशबंधक उनसे अबंधक उनसे (आहारक- शरीर-प्रयोग-बंध) (भंते! आहारक- शरीर प्रयोग - बंध) यदि (२१/७६, ७७) (तीन) 81 (तेजसअपेक्षा) ह? -बंधक उनसे ( कर्म शरीर प्रयोग - बंध) (सात) अनुकंपा, अनेक (सात) (पांच)
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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