SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 535
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति . . . है ४. अशुद्ध शुद्ध है? क्या विनसा हैं? (अथवा) विनसाभी हैं २. मित्र हैं २. अथवा मिश्रभी हैं ३. विनसा हैं ३. अथवा विनसाभी हैं ४. २. वचन २. अथवा वचनभी हैं ३. काय-प्रयोग-परिणत भी है ३. अथवा काय-प्रयोग-परिणत परिणत भी है परिणत है अथवा यावत् हैं? यावत् है? (भ. ८/४६) यावत् परिणत भी है यावत् परिणत हैं अथवा यावत् . पृष्ठ सूत्र पंक्ति | अशुद्ध २६५ | ३६६ इसी प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीका- जो पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक (-एके|यिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत |न्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल है वे) इसी प्रकार १० अनुत्तरीपपातिक-देव- अनुत्तरोपपातिक (-देवइसी प्रकार पर्याप्त जो पर्याप्त|-एकेन्द्रिय (-एकेन्द्रिय४ -परिणत |-परिणत पुद्गल है वे) इसी प्रकार | ३८, ३६ ३ | इसी प्रकार पर्याप्त जो पर्याप्त|-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय- -पृथ्वीकायिक (-एकेन्द्रिय-परिणत -परिणत पुद्गल है वे) इसी प्रकार | -परिणत -परिणत पुद्गल हैं वे) इसी प्रकार मिश्र-परिणत पुद्गल (मिश्र-परिणत पुद्गल) इस प्रकार जैसे| वक्तव्य है। शेष सब पूर्ववत्, केवल वक्तव्य है, सब निरवशेष उसी इतना विशेष है-प्रयोग- प्रकार (वक्तव्य है), इतना विशेष है-(प्रयोग. स्थान पर स्थान पर) | ४ कहना चाहिए यावत् का अमिलाप कहना चाहिए, शेष पूर्ववत् (म. ८/३-३६) यावत् " यावत् आयत (म. ८/३६) यावत् आयत२ | विनसा-परिणत पुद्गल | (विनसा-परिणत पुद्गल) सर्वत्र | परिणत। जो परिणता msr होने वाले भंग (होने वाले भंग) (भंग) -परिणत भी (वक्तव्य है। |-परिणत की भी वक्तव्यता। है यावत् ७ . ७ चार-चार भेदों भेद-चतुष्क | दो-दो भेद भेद-द्विक ५ भेदों भेद ४ दोनों ही मनुष्य (वह) दोनों ही (-समूर्छिम-मनुष्य-) -परिणत है। |-परिणत) भी है, र्गभावक्रान्तिक मनुष्य|-पंचेन्द्रिय-औदारिक-शरीर-काय |-प्रयोग-परिणत भी है। |. परिणत है। इस प्रकार परिणत है-इस प्रकार | ५ |आलापक कहा आलापक (भ. ८/५०-५७) कहा ६ आलापक वक्तव्य है। केवल इतना आलापक भी वक्तव्य है, इतना ५६.३-४ वैक्रिय-शरीर-काय-प्रयोग (-वैक्रिय-शरीर-काय-प्रयोग) ६०४, ५ -वैक्रिय-शरीर-काय-प्रयोग (-वैक्रिय-शरीर-काय-प्रयोग) - ६-७ शरीर की वक्तव्यता है शरीर उक्त है * ७ है। यावत् -कल्पातीतग (-कल्पातीतग१० -प्रयोग -प्रयोग) | वैक्रिय की वक्तव्यता है वैकिय (उक्त है) ३ की भी वक्तव्यता भी (वक्तव्य है), ३ जैसी ३ नामक पण्णवणा के २१वें पद (नामक पण्णवणा के २१वें पद) ३-४ आहारक-शरीर की वक्तव्यता है (आहारक-शरीर उक्त है ४ वक्तव्य है वक्तव्य है) ३ की वक्तव्यता है वैसे आहारक- |(उक्त है) वैसा (आहारक-) ४ | अविकल रूप से निरवशेष २ |है? यावत् है? (अथवा) यावत् ३ है। इस ४ नामक पण्णवणा के २० पद में |(नामक पण्णवणा के २२वें पद) में कर्म के भेद की वक्तव्यता है वैसे कर्म का भेद (उक्त है), वैसा ६ है, यावत् है अथवा है अथवा २ है? ३ की वक्तव्यता है (उक्त है) ३ अविकल रूप से निरवशेष है यावत् है (अथवा) यावत् २ गौतम? -परिणत भी है -परिणत है अथवा यावत् -परिणत भी है। -परिणत है। |-परिणत भी है -परिणत है anor २ परिणत भी है २. मिश्र-परिणत परिणत है २. अथवा मिश्र-परिणत भी हैं ३. विनसा-परिणत भी हैं हैं ३. अथवा विनसा-परिणत है परिणत भी हैं, इस परिणत हैं, अथवा (-) इस मंग | (भंग) परिणत भी है यावत् परिणत है अथवा यावत् परिणत भी है। परिणत है, मंग (भंग) द्रव्य-त्रय के अधिकार में भी द्रव्य- (द्रव्य-त्रय के अधिकार में) भी उसी प्रकार (द्रव्य६ (सूत्र ७३ से ७८) (भ. ६/७३-७८) के समान के समान) | परिणत भी है २. मिश्र-परिणत परिणत है २. अथवा मिश्र-परिणत भी है ३. विनसा-परिणत भी है है ३. अथवा विनसा-परिणत है ३ | सात, यावत् सात यावत् K १२ | जैसे पण्णवणा में इस प्रकार जैसे एग्णवणा (१/५ अविकल रूप में x ५ ३ - है, अथवा गौतम सत्य-मन-प्रयोग-परिणत कि वक्तव्यता है मृषा-मन-प्रयोग-परिणत की और असत्यमृषा-परिणत निरवशेष एक द्रव्य की अपेक्षा पुद्गल-परिणति-पद गौतम! (वह) सत्य (-मन-प्रयोग-परिणत) (भ. ८/४५-४६ में) (उक्त है) मृषा (-मन-प्रयोग-परिणत) की भी और असत्यामृषा-परिणत भी जैसा (उक्त है) वैसा | परिणत भी | असमारम्भ-वचन अथवा अपार्याप्तक (-पृथ्वीकायिक -परिणत) (पुद्गल) 5. . . . . . . . . गौतम! (सूत्र ८६ से ११६) ७ की इसी प्रकार वक्तव्यता, कम आशीविष गौतम! वृश्चिक-जाति-आशीविष | मंडूक-जाति-आशीविष ३ है। क्रियात्मक २ उरग-जाति-आशीविष | मनुष्य-जाति-आशीविष | है। क्रियात्मक ३ | है। तिर्यग्योनिक (म. ६/८६-११६) | इस प्रकार (वक्तव्य है), अल्प (आशीविष) गौतम! (जाति-आशीविष) (वृश्चिक-जाति-आशीविष) (मंडूक-जाति-आशीविष) है, क्रियात्मक (उरग-जाति-आशीविष) (मनुष्य-जाति-आशीविष) है, क्रियात्मक है, तिर्यग्योनिक (अथवा) यावत् की वक्तव्यता वैसे परिणत की भी ४ असमारम्भ-सत्य-वचन ५ अपर्याप्त६ -पृथ्वीकायिक -परिणत ७०,७१ है यावत् ७१, ७२ २ गौतम! ७३ | १ है? क्या मिश्र है अथवा यावत् गौतम! (वह) २ यावत् (२३)
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy