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________________ भगवती सूत्र श. ११ : उ. ११ : सू. १५९-१६४ आठ नागर, धूमवास, तगर, इलायची, हरताल, हिंगुर, मनःशिल और अंजन के डिब्बे, आठ सर्षप के डिब्बे, आठ कुब्जा दासियां (उववाई, सूत्र ७०) की भांति वक्तव्यता यावत् आठ पारसी दासियां, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी दासियां आठ चामर, आठ चामरधरिणी दासियां, आठ तालवृंत (वीजन), आठ तालवृंतधारिणी दासियां, आठ करोटिका, आठ करोटिकाधारिणी दासियां, आठ क्षीर-धात्रियां, आठ मज्जन धात्रियां, आठ मंडन - धात्रियां, आठ खेलनक - धात्रियां, आठ अंक धात्रियां, आठ अंगमर्दिका, आठ उन्मर्दिका, आठ स्नान कराने वाली, आठ मंडन (प्रवर पोशाक पहनाने वाली) करने वाली, आठ चन्दन आदि घिसने वाली, आठ चूर्णक (तांबूल, गंधद्रव्य आदि) पीसने वाली, आठ क्रीड़ा कराने वाली, आठ परिहास करने वाली, आठ आसन के समीप रहने वाली, आठ नाटक करने वाली, आठ कौटुम्बिक आज्ञाकारिणी दासियां, आठ रसोई बनाने वाली, आठ भंडार की रक्षा करने वाली, आठ बालक का लालन-पालन करने वाली दासियां, आठ पुष्प- धारिणी (पुष्प की रक्षा करने वाली), आठ पानी भरने वाली, आठ बलि करने वाली, आठ शय्या करने वाली, आठ आभ्यंतर प्रातिहारियां, आठ बाह्य प्रातिहारियां, आठ माला बनाने वाली, आठ आटा आदि पीसने वाली, इसके अतिरिक्त बहुत सारा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, दूष्य (वस्त्र), विपुल वैभव, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, मनःसिल, प्रवाल, लालरत्न और श्रेष्ठसार - इन वैभवशाली द्रव्यों का प्रीतिदान किया, जो सातवीं पीढ़ी तक प्रकाम देने के लिए, प्रकाम भोगने और बांटने के लिए समर्थ था । १६०. महाबल कुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक कोटि हिरण्य दिया, एक-एक कोटि सुवर्ण दिया, एक-एक मुकुटों में प्रवर मुकुट दिया, इसी प्रकार संपूर्ण वर्णन पूर्ववत् यावत् एक-एक आटा आदि पीसने वाली दासी दी। इसके अतिरिक्त बहुत सारा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, दूष्य (वस्त्र) विपुल वैभव, कनक, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, मनःशिल, प्रवाल, लालरत्न और श्रेष्ठसार – इन वैभवशाली द्रव्यों का प्रीतिदान किया, जो सातवीं पीढ़ी तक प्रकाम देने के लिए, प्रकाम भोगने और बांटने के लिए समर्थ था । १६१. महाबल कुमार अपने प्रवर प्रासाद के उपरिभाग में जैसे जमाली की यावत् पंचविध मनुष्य-संबधी काम भोग को भोगता हुआ विहार करने लगा । १६२. उस काल और उस समय में अर्हत् विमल (तेरहवें तीर्थंकर) के प्रपौत्र ( प्रशिष्य) जाति-संपन्न वर्णक केशीस्वामी (रायपसेणइय, ६८७ ) की भांति वक्तव्यता यावत् धर्मघोष नामक अणगार पांच सौ अणगारों के साथ संपरिवृत होकर क्रमानुसार विचरण, ग्रामानुग्राम परिव्रजन करते हुए जहां हस्तिनापुर नगर था जहां सहस्राम्रवन उद्यान था, वहां आए। वहां आकर प्रवास - योग्य स्थान की अनुमति ली, अनुमति लेकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहार कर रहे थे । १६३. हस्तिनापुर नगर के श्रृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों और मार्गों पर महान् जन सम्मर्द यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी । १६४. महाबल कुमार उस महान् जन सम्मर्द, जन-व्यूह यावत् जन- सन्निपात सुन कर, देख कर इस प्रकार जैसे जमाली की वैसे ही सोचा, कंचुकी पुरुष को बुलाया, बुला कर इस ४३४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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