SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (XLVIII) “विषय को दृष्टि के अनसार उत्तर बहुत विस्तार से दिए गए हैं। कहीं-कहीं प्रश्न विस्तृत है और उत्तर संक्षिप्त है, इसलिए प्रतिप्रश्न भी मिलता है।"२ प्रतिप्रश्न की भाषा है-"भंते! यह किस अपेक्षा से कहा गया है?" “विषय के निगमन की भाषा है-“गौतम! यह इस अपेक्षा से ऐसा कहा गया है।"३ । उदाहरणार्थ-"भन्ते! क्या जीव और पुद्गल अन्योन्य-बद्ध, अन्योन्य-स्पृष्ट, अन्योन्य-अवगाढ, अन्योन्य-स्नेहप्रतिबद्ध और अन्योन्य-एकीभूत बने हुए हैं? हां, बने हुए हैं। भन्ते! यह किस अपेक्षा से ऐसा कहा जा रहा है-जीव और पुद्गल अन्योन्य-बद्ध, अन्योन्य-स्पृष्ट, अन्योन्य-अवगाढ, अन्योन्य-स्नेहप्रतिबद्ध और अन्योन्य-एकीभूत बने हुए हैं? गौतम! जैसे कोई द्रह (नद) है। वह जल से पूर्ण, परिपूर्ण प्रमाण वाला, छलकता हुआ, हिलोरें लेता हुआ चारों ओर से जलजलाकार हो रहा है। कोई व्यक्ति उस द्रह में एक बहुत बड़ी सैकड़ों आश्रवों और सैकड़ों छिद्रों वाली नौका को उतारे। गौतम! वह नौका उन आश्रव-द्वारों के द्वारा जल से भरती हुई–भरती हुई, पूर्ण, परिपूर्ण प्रमाण वाली, छलकती हुई, हिलोरें लेती हुई, चारों ओर से जलजलाकार हो जाती है? हां, हो जाती है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव और पुद्गल अन्योन्य-बद्ध, अन्योन्य-स्पृष्ट, अन्योन्य-अवगाढ, अन्योन्य-स्नेहप्रतिबद्ध और अन्योन्य-एकीभूत बने हुए ___ "भगवती में कहीं-कहीं स्फुट प्रश्न हैं, तो कहीं-कहीं एक ही प्रकरण से संबंधित प्रश्नोत्तर की श्रृंखला बनती है। "शतक के प्रारम्भ में संग्रहणी गाथा होती है। उसमें उस शतक के सभी उद्देशकों की सूची मिल जाती है। गद्य के मध्य में भी संग्रहणी गाथाएं प्रचुरता से मिलती हैं। उदाहरण के लिए चतुर्थ शतक का पांचवां और आठवां तथा छठे शतक का १३२,१३४वां सूत्र द्रष्टव्य हैं।" १. अंगसुत्ताणि, भाग २, भगवई, ८ पृ.१३८ । २६-३९। वही, १२/१५९। २. भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. ६. वही, १०/३९,४०। २२। ७. भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ. ३. वही, खण्ड १, भूमिका, पृ. २२। २३। ४. वही, खण्ड १, १/३१२,३१३,
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy