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________________ श. ११ : उ. ११ : सू. १२१-१२८ भगवती सूत्र अथवा रात्रि के मुहूर्त भाग का एक सौ बाईसवां भाग कम होते होते जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है। जब दिवस अथवा रात्रि का जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है तब दिवस अथवा रात्रि के मुहूर्त भाग का एक सौ बाईसवां भाग बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्टतः साढे-चार मुहूर्त का प्रहर होता है। १२२. भंते! दिवस अथवा रात्रि का उत्कृष्टतः साढे-चार मुहूर्त का प्रहर कब होता है? दिवस अथवा रात्रि का जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर कब होता है? सुदर्शन ! जब उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त का दिन होता है, जघन्यतः बारह मुहूर्त की रात्रि होती है तब दिवस का उत्कृष्टतः साढे-चार मुहूर्त का प्रहर होता है और रात्रि का जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है। जब उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है, जघन्यतः बारह मुहुर्त का दिन होता है तब रात्रि का उत्कृष्टतः साढे-चार मुहर्त का प्रहर होता है और दिवस का जघन्यतः तीन मुहूर्त का प्रहर होता है। १२३. भंते! उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त का दिवस कब होता है? जघन्यतः बारह मुहूर्त की रात्रि कब होती है? उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त की रात्रि कब होती है? जघन्यतः बारह मुहूर्त का दिवस कब होता है? सुदर्शन! आषाढ-पूर्णिमा के दिन उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त का दिवस होता है और जघन्यतः बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। पौष पूर्णिमा के दिन उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और बारह मुहूर्त का दिवस होता है। १२४. भंते क्या दिन और रात्रि समान होते हैं? हां, होते हैं। १२५. भंते! दिवस और रात्रि समान कब होते हैं? सुदर्शन ! चैत्र और आश्विन की पूर्णिमा में दिवस और रात्रि समान होते हैं-पंद्रह मुहूर्त का दिन और पंद्रह मुहूर्त की रात्रि होती है। दिन अथवा रात्रि के मुहूर्त भाग का चौथा भाग-पौने-चार मुहूर्त का प्रहर होता है। वह है प्रमाण-काल। १२६. वह यथायुर्निवृत्ति-काल क्या है? नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य अथवा देवों ने जितना और जैसा आयुष्य बांधा है, यथायुर्निवृत्ति-काल है। यह है यथायुर्निवृत्ति-काल। १२७. वह मरण-काल क्या है? जीव का शरीर से अथवा शरीर का जीव से पृथक् होने का क्षण मरण-काल है। यह है मरण -काल। १२८. वह अध्वा-काल क्या है? वह अध्वा-काल है-उसका अर्थ है समय, उसका अर्थ है आवलिका यावत् उसका अर्थ है उत्सर्पिणी। द्विभाग छेद से छेदन करते करते जिसका विभाग न किया जा सके, वह समय है, उसका अर्थ ४२४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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