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________________ भगवती सूत्र श. ११ : उ. १० : सू. १०४-१०८ १०४. भंते! अधो-लोक-क्षेत्र-लाक के एक आकाश-प्रदेश में क्या १. जीव हैं? २. जीव-देश हैं? ३. जीव-प्रदेश हैं? ४. अजीव हैं? ५. अजीव-देश हैं? ६. अजीव-प्रदेश हैं? गौतम! जीव नहीं हैं, जीव-देश भी हैं, जीव-प्रदेश भी हैं, अजीव भी हैं, अजीव-देश भी हैं, अजीव-प्रदेश भी हैं। जो जीव-देश हैं वे नियमतः १. एकेन्द्रिय के देश हैं २. अथवा एकेन्द्रिय के देश हैं और द्वीन्द्रिय का देश है ३. अथवा एकेन्द्रिय के देश हैं और द्वीन्द्रिय के देश हैं। इस प्रकार मध्य-विकल्प-विरहित यावत् एकेन्द्रिय के देश हैं और अनिन्द्रिय के देश हैं। जो जीव-प्रदेश हैं, वे नियमतः १. एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं २. अथवा एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं ३. अथवा एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं और द्वीन्द्रिय के प्रदेश हैं। इस प्रकार प्रथम-विकल्प-विरहित यावत् पञ्चेन्द्रिय और अनिन्द्रिय के तीन भंग वक्तव्य हैं। जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे रूपि-अजीव और अरूपि- अजीव। रूपी पूर्ववत् वक्तव्य है। जो अरूपि-अजीव हैं, वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं जैसे-धर्मास्तिकाय नहीं है, धर्मास्तिकाय का देश है। धर्मास्तिकाय का प्रदेश है। अधर्मास्तिकाय नहीं है, अधर्मास्तिकाय का देश है। अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है। अध्वा-समय है। १०५. भंते! क्या तिर्यक्-लोक-क्षेत्र-लोक के एक आकाश-प्रदेश में जीव हैं? इस प्रकार अधो-लोक-क्षेत्र-लोक की वक्तव्यता, इसी प्रकार ऊर्ध्व-लोक-क्षेत्र-लोक की वक्तव्यता, इतना विशेष है-अध्वा-समय वक्तव्य नहीं है। अरूपी के चार प्रकार हैं। १०६. भंते! क्या लोक के एक आकाश-प्रदेश में जीव हैं? अधो-लोक-क्षेत्र-लोक के एक आकाश-प्रदेश की भांति वक्तव्यता। १०७. भंते! अलोक के एक आकाश-प्रदेश में जीव हैं-पृच्छा। गौतम! जीव नहीं हैं, जीव के देश नहीं हैं, जीव के प्रदेश नहीं हैं, अजीव नहीं हैं, अजीव के देश नहीं हैं, अजीव के प्रदेश नहीं हैं। एक अजीव-द्रव्य का देश है, अगुरुलघु है, अनन्त अगुरुलघु, गुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश का अनंत-भाग-न्यून है। १०८. अधो-लोक-क्षेत्र-लोक में द्रव्यतः अनन्त जीव-द्रव्य, अनन्त अजीव-द्रव्य, अनन्त जीव-अजीव-द्रव्य हैं। इसी प्रकार तिर्यग्-लोक-क्षेत्र-लोक में भी, इसी प्रकार ऊर्ध्व-लोक-क्षेत्र-लोक में भी। (इसी प्रकार लोक में भी) द्रव्यतः अलोक में जीव-द्रव्य नहीं हैं, अजीव-द्रव्य नहीं हैं। जीव-अजीव-द्रव्य नहीं हैं। वह एक अजीव-द्रव्य का देश है। अगुरुलघु है, अनन्त अगुरुलघु-गुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश का अनन्त-भाग-न्यून है। कालतः अधो-लोक-क्षेत्र-लोक कभी नहीं था, कभी नहीं है और कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है-वह था, है, और होगा वह ध्रुव नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित, नित्य है। इसी प्रकार तिर्यग्-लोक-क्षेत्र-लोक में, इसी प्रकार ऊर्ध्व-लोक-क्षेत्र-लोक में, इसी प्रकार अलोक में। भावतः अधो-लोक-क्षेत्र-लोक म अनंत वर्ण-पर्यव, अनंत गंध-पर्यव, अनंत रस-पर्यव, ४१९
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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