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________________ श. ११ : उ. ३-७ : सू. ४४-५४ तीसरा उद्देश ४४. भंते! एकपत्रक पलाश क्या एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है? इस प्रकार उत्पल-उद्देशक की वक्तव्यता सम्पूर्ण रूप से वक्तव्य है, इतना विशेष है - शरीर की अवगाहना जघन्यतः अंगुल का असंख्यातवां भाग, उत्कृष्टतः पृथक्त्व - गव्यूत । देव गति से उपपन्न नहीं होते हैं। भगवती सूत्र ४५. भंते! वे जीव कृष्ण-लेश्या वाले हैं ? नील- लेश्या वाले हैं ? कापोत- लेश्या वाले हैं ? गौतम ! कृष्ण - लेश्या वाले भी हैं, नील- लेश्या वाले भी हैं, कापोत- लेश्या वाले भी हैं - छब्बीस भंग होते हैं, शेष पूर्ववत् । ४६. भंते! वह एसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । चौथा उद्देशक ४७. भंते! एकपत्रक कुंभी क्या एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है ? इस प्रकार जैसे पलाश - उद्देशक की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है- स्थिति जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व वर्ष, शेष पूर्ववत् । ४८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । पांचवां उद्देशक ४९. भंते! एकपत्रक नाड़ीक क्या एक जीव वाला है ? अनेक जीव वाला है ? इस प्रकार कुंभी- उद्देशक की वक्तव्यता सम्पूर्ण रूप से कथनीय है । ५०. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । छठा उद्देश ५१. भंते! एकपत्रक-पद्म क्या एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है ? इस प्रकार उत्पल-उद्देशक की वक्तव्यता सम्पूर्ण रूप से कथनीय है । ५२. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । सातवां उद्देशक ५३. भंते! एकपत्रक - कर्णिका क्या एक जीव वाली है ? अनेक जीव वाली है ? इस प्रकार पूर्ववत् सम्पूर्ण रूप से वक्तव्य है । ५४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । ४०८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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