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________________ श. ९ : उ. ३३ : सू. १८०-१८६ भगवती सूत्र बुहार जमीन की सफाई करो, गोबर की लिपाई करो, जैसे (उववाई, सूत्र ५५) की वक्तव्यता यावत् प्रवर सुरभि वाले गंध-चूर्णों से सुगंधित गंधवर्ती तुल्य करो, कराओ। ऐसा कर और करा कर इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। उन्होंने वैसा कर आज्ञा का प्रत्यर्पण किया। १८१. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने पुनः कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुला कर इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! क्षत्रियकुमार जमालि का महान् अर्थ वाला, महान् मूल्य वाला, महान् अर्हता वाला और विपुल निष्क्रमण-अभिषेक उपस्थित करो। कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही निष्क्रमण-अभिषेक उपस्थित किया। १८२. माता-पिता क्षत्रियकुमार जमालि को पूर्वाभिमुख कर प्रवर सिंहासन पर बिठाते हैं, बिठाकर एक सौ आठ स्वर्ण-कलश, एक सौ आठ रजत-कलश, एक सौ आठ मणिमय-कलश, एक सौ आठ स्वर्ण-रजतमय कलश, एक सौ आठ स्वर्ण-मणिमय कलश, एक सौ आठ रजत-मणिमय कलश, एक सौ आठ स्वर्ण-रजत-मणिमय कलश और एक सौ आउ भौमेय (मिट्टी के) कलश के द्वारा उसका निष्क्रमण-अभिषेक करते हैं। संपूर्ण ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूति, विभूषा, ऐश्वर्य, पुष्प, गंध, माल्यांकार और सब वाद्यों के शब्द निनाद के द्वारा तथा महान् ऋद्धि, महान् द्युति, महान् बल, महान् समुदय, महान् वर वाद्यों का एक साथ प्रवादन, शंख, प्रणव, पटह, भेरी, झालर, खरमुही-काहला, हुडुक्क डमरु के आकार का वाद्य, मुरज-ढोलक, मृदंग और दुन्दुभि के निर्घोष से नादित शब्द के द्वारा महान् निष्क्रमण-अभिषेक से अभिषिक्त करते हैं। अभिषिक्त कर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दस-नखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर 'जय हो-विजय हो' के द्वारा वर्धापित करते हैं। वर्धापित कर इस प्रकार बोले-जात! बताओ हम क्या दें? क्या वितरण करें? तुम्हें किस वस्तु का प्रयोजन है? १८३. क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता से इस प्रकार कहा-माता-पिता ! मैं कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र को लाना तथा नापित को बुलाना चाहता हूं। १८४. क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुला कर इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! शीघ्र ही श्रीगृह से तीन लाख मुद्रा लेकर दो लाख मुद्रा के द्वारा कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाओ। एक लाख मुद्रा से नापित को बुलाओ। १८५. कौटुम्बिक पुरुष क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के इस प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट हो गए। दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर- 'स्वामी! आपकी आज्ञा के अनुसार ऐसा ही होगा', यह कहकर विनयपूर्वक वचन को स्वीकार करते हैं। स्वीकार कर शीघ्र ही श्रीगृह से तीन लाख मुद्राएं ग्रहण करते हैं। ग्रहण कर दो लाख मुद्राओं के द्वारा कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाते हैं, एक लाख मुद्रा के द्वारा नापित को बुलाते हैं। १८६. वह नापित क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के निर्देशानुसार कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाए जाने पर हृष्ट-तुष्ट हो गया। उसने बलि-कर्म किया, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित्त किया, शुद्धप्रवेश्य (सभा में प्रवेशोचित), मांगलिक वस्त्रों को विधिवत् पहना, अल्पभार और ३७४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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