SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 438
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. ९ : उ. ३३ : सू. १५८-१६३ भांति वक्तव्य है, यावत् क्षत्रियकुंडग्राम नगर के ठीक मध्य से निकल रहे हैं? उसने इस प्रकार देखा, देखकर कंचुकीपुरुष को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार बोला - देवानुप्रियो ! क्या आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर में इन्द्र - महोत्सव है यावत् सार्थवाह आदि निर्गमन कर रहे हैं ? १५९. क्षत्रिय कुमार जमालि के यह कहने पर वह कंचुकी-पुरुष हृष्ट-तुष्ट हो गया । उसने श्रमण भगवान महावीर के आगमन का निश्चय होने पर दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली दसनखात्मक अंजली को सिर के सम्मुख घुमा कर, मस्तक पर टिका कर क्षत्रियकुमार जमालि को जय-विजय के द्वारा वर्धापित किया, वर्धापित कर इस प्रकार बोला- देवानुप्रिय ! आज क्षत्रियकुंडग्राम नगर में न इन्द्र- महोत्सव है यावत् सार्थवाह आदि निर्मन कर रहे हैं। देवानुप्रिय ! आज श्रमण भगवान महावीर आदिकर यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी ब्राह्मणकुंडग्राम नगर के बाहर बहुशालक चैत्य में प्रवास योग्य स्थान की अनुमति लेकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे हैं। इसलिए ये बहुत उग्र, भोज यावत् सार्थवाह आदि निर्गमन कर रहे हैं। १६०. क्षत्रियकुमार जमालि कंचुकी-पुरुष के पास इस अर्थ को सुनकर, अवधारण कर हृष्टतुष्ट हो गया। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घण्टाओं वाले अश्व रथ को जोत कर उपस्थित करो, उपस्थित कर मेरी आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो । १६१. कौटुम्बिक पुरुषों ने क्षत्रियकुमार जमालि के यह कहने पर चार घण्टाओं वाले अश्व-रथ को जोतकर उपस्थित किया। उपस्थित कर उस आज्ञा का प्रर्त्यपण किया । १६२. क्षत्रियकुमार जमालि जहां मर्दन घर है, वहां आता है। वहां आकर स्नान तथा बलिकर्म कर यावत् शरीर के अवयवों पर चंदन का लेप कर, सर्व अलंकारों से विभूषित होकर मर्दन - घर से निकलता है, निकल कर जहां बाहर उपस्थानशाला है जहां चार घण्टाओं वाला अश्व- रथ है, वहां आता है, आकर चार घण्टाओं वाले अश्वरथ पर आरूढ़ होता है। आरूढ़ होकर कटसरैया के फूलों से बनी मालाओं से युक्त छत्र को धारण करता है, महान् सुभटों के सुविस्तृत संघातवृन्द से परिक्षिप्त होकर क्षत्रिय कुण्डग्राम नगर के ठीक मध्य से निर्गमन करता है, निर्गमन कर जहां ब्राह्मणकुंडग्राम नगर है, जहां बहुशालक चैत्य है, वहां आता है, आकर घोड़ों की लगाम को खींचता है, खींचकर रथ को ठहराता है, ठहरा कर रथ से उतरता है, उतर कर पुष्प, तंबोल, आयुध आदि तथा उपानत् को विसर्जित करता है, विसर्जित कर एक शाटक वाला उत्तरासंग करता है। उत्तरासंग कर आचमन करता है, अशुचि द्रव्य का अपनयन करता है, परम शुचीभूत होकर अंजलियों को मुकुलित कर सिर पर रखता है, जहां श्रमण भगवान महावीर है वहां आता है, आकर श्रमण भगवान को दायीं ओर से प्रारंभ कर तीन र प्रदक्षिणा करता है, प्रदक्षिणा कर वंदन - नमस्कार करता है, वंदन - नमस्कार कर तीन प्रकार की पर्युपासना से पर्युपासना करता है । १६३. श्रमण भगवान महावीर ने क्षत्रिय कुमार जमालि को उस विशाल - परिषद् में धर्म का प्रतिबोध दिया, जिस परिषद् में ऋषि परिषद्, मुनि-परिषद्, यति-परिषद् और देव-परिषद् का समावेश है। उन परिषदों में सैकड़ों सैकड़ों व्यक्ति और सैकड़ों सैकड़ों मनुष्यों के समूह बैठे ३६८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy