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________________ भगवती सूत्र श. ९ : उ. ३२ : सू. १००-१०६ वैसे ही वक्तव्य हैं, यावत् अथवा रत्नप्रभा में पंकप्रभा में यावत् अधः सप्तमी में होते हैं अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में यावत् धूमप्रभा में और तमा में होते हैं, अथवा रत्नप्रभा में यावत् धूमप्रभा में और अधः सप्तमी में होते हैं । अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रभा में यावत् पंकप्रभा में, तभा में और अधःसप्तमी में होते हैं । अथवा रत्नप्रभा में शर्कराप्रभा में, वालुकाप्रभा में, धूमप्रभा में, तभा में और अधः सप्तमी में होते हैं । अथवा रत्नप्रभा में, शर्करा प्रभा में, पंकप्रभा में यावत् अधः सप्तमी में होते हैं। अथवा रत्नप्रभा में, वालुकाप्रभा यावत् अधः सप्तमी में होते हैं । अथवा रत्नप्रभा में, शर्कराप्रथा में यावत् अधः सप्तमी में होते हैं। १०१. भंते! रत्नप्रभा पृथ्वी में प्रवेश करने वाले, शर्कराप्रभा - पृथ्वी में प्रवेश करने वाले यावत् अधः सप्तमी पृथ्वी में प्रवेश करने वाले नैरयिकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? गांगेय ! अधः सप्तमी - पृथ्वी में प्रवेश करने वाले नैरयिक सबसे अल्प हैं। मा पृथ्वी में प्रवेश करने वाले नैरयिक उनसे असंख्येय गुण हैं। इस प्रकार प्रतिलोमक (उल्टा चलने पर) यावत् रत्नप्रभा - पृथ्वी में प्रवेश करने वाले नैरयिक असंख्येय-गुण हैं। १०२. भंते! तिर्यग्योनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त हैं ? गांगेय ! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त हैं, जैसे- एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-प्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक - प्रवेशनक । १०३. भंते! एक तिर्यग्योनिक तिर्यग्योनिक प्रवेशनक में प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय में होता है यावत् पंचेन्द्रिय में होता है ? गांगेय ! एकेन्द्रिय में होता है यावत् अथवा पंचेन्द्रिय में होता है । १०४. भंते! दो तिर्यग्योनिक तिर्यग्योनिक- प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रिय में होते हैं यावत् पंचेन्द्रिय में होते हैं ? गांगेय ! एकेन्द्रिय में होते हैं यावत् अथवा पंचेन्द्रिय में होते हैं । अथवा एक एकेन्द्रिय में और एक द्वीन्द्रिय में होता है । इस प्रकार जैसे नैरयिक प्रवेशनक वैसे तिर्यग्योनिक- प्रवेशनक वक्तव्य है यावत् असंख्येय । १०५. भंते! उत्कृष्ट तिर्यग्योनिक तिर्यग्योनिक- प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए एकेन्द्रिय में होते हैं ? -पृच्छा । गांगेय! सब एकेन्द्रिय में होते हैं, अथवा एकेन्द्रिय में और द्वीन्द्रिय में होते हैं । इस प्रकार जैसे नैरयिकों की चारणा की, वैसे ही तिर्यग्योनिकों की भी चारणा करनी चाहिए । एकेन्द्रियों को न छोड़ते हुए द्विसंयोग, त्रि-संयोग, चतुष्क-संयोग, पंच-संयोग उपयुक्त योजना कर वक्तव्य हैं। यावत् अथवा एकेन्द्रिय में, द्वीन्द्रिय में यावत् पंचेन्द्रिय में होते हैं। १०६. भंते! इन एकेन्द्रिय में प्रवेश करने वाले यावत् पंचेन्द्रिय में प्रवेश करने वाले तिर्यग्योनिकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? ३५६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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