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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. १० : सू. ४८१-४८८ - प्रकृतियों के वक्तव्य हैं यावत् वैमानिकों के आंतरायिक-कर्म अनंत अविभाग-परिच्छेद प्रज्ञप्त हैं । ४८२. भंते! एक-एक जीव का एक-एक जीव- प्रदेश ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभाग- परिच्छेदों से आवेष्टित - परिवेष्टित है ? गौतम ! स्यात् आवेष्टित परिवेष्टित है, स्यात् आवेष्टित परिवेष्टित नहीं है । यदि आवेष्टित- परिवेष्टित है तो वह नियमतः अनंत अविभाग-परिच्छेदों से आवेष्टित परिवेष्टित है । ४८३. भंते! एक-एक नैरयिक का एक एक जीव- प्रदेश ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभाग- परिच्छेदों से आवेष्टित-परिवेष्टित है ? गौतम ! नियमतः अनंत अविभाग-परिच्छेदों से आवेष्टित परिवेष्टित है। नैरयिक की भांति वैमानिक तक के दण्डकों की वक्तव्यता, इतना विशेष है - मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य है । ४८४. भंते! एक एक जीव का एक-एक जीव- प्रदेश दर्शनावरणीय कर्म के कितने अविभाग- परिच्छेदों से आवेष्टित - परिवेष्टित है ? इस प्रकार जैसे ज्ञानावरणीय की वक्तव्यता वैसे ही दर्शनावरणीय के वैमानिक तक के दण्डकों की वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् आंतरायिक की वक्तव्यता, इतना विशेष है - वेदनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र - इन चार कर्मों के विषय मनुष्य की नैरयिक की भांति वक्तव्यता । कर्मों का परस्पर नियम - भजना - पद ४८५. भंते! जिसके ज्ञानावरणीय है क्या उसके दर्शनावरणीय होता है ? जिसके दर्शनावरणीय है क्या उसके ज्ञानावरणीय होता है ? गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय है उसके दर्शनावरणीय नियमतः होता है। जिसके दर्शनावरणीय है उसके ज्ञानावरणीय नियमतः होता है । ४८६. भंते! जिसके ज्ञानावरणीय है क्या उसके वेदनीय होता है ? जिसके वेदनीय है क्या उसके ज्ञानावरणीय होता है ? गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय है उसके वेदनीय नियमतः होता है। जिसके वेदनीय है उसके ज्ञानावरणीय स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता है। ४८७. भंते! जिसके ज्ञानावरणीय है क्या उसके मोहनीय होता है ? जिसके मोहनीय है क्या उसके ज्ञानावरणीय होता है ? गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय है उसके मोहनीय स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके मोहनीय है उसके ज्ञानावरणीय नियमतः होता है । ४८८. भंते! जिसके ज्ञानावरणीय है क्या उसके आयुष्य होता है ? जिसके आयुष्य है क्या उसके ज्ञानावरणीय होता है ? गौतम! जिसके ज्ञानावरणीय है उसके आयुष्य नियमतः होता है। जिसके आयुष्य है, उसके ज्ञानावरणीय स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। इसी प्रकार नाम और गोत्र-कर्म के साथ ३३१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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