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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. ९ : सू. ४२२-४३० न देना, सात-वेदनीय-शरीर प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२३. भंते! असात-वेदनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! असात-वेदनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के हेतु हैं-प्राणों की अनुकंपा न करना, भूतों की अनुकंपा न करना, जीवों की अनुकंपा न करना, सत्त्वों की अनुकंपा न करना, अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखित करना, उन्हें दीन बनाना, शरीर का अपचय करने वाला शोक पैदा करना, अश्रुपात कराने वाला शोक पैदा करना, लाठी आदि का प्रहार करना, शारीरिक परिताप देना, असात-वेदनीय-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२४. भंते! मोहनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! मोहनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के सात हेतु हैं-तीव्र क्रोध, तीव्र मान, तीव्र माया, तीव्र लोभ, तीव्र दर्शन-मोहनीय, तीव्र चारित्र-मोहनीय, मोहनीय-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम -कर्म का उदय। ४२५. भंते! नैरयिक-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! नैरयिक-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के पांच हेतु हैं-महारंभ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय-वध, मांसाहार, नैरयिक-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२६. भंते! तिर्यग्योनिक-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! तिर्यग्योनिक-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के पांच हेतु हैं माया, कूट माया, असत्य वचन, कूटतोल-कूटमाप, तिर्यग्योनिक-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२७. भंते! मनुष्य-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय होता है? गौतम! मनुष्य-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के पांच हेतु हैं-प्रकृति-भद्रता, प्रकृति-विनीतता, सानुक्रोशता, अमत्सरता, मनुष्य-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४२८. भंते! देव-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! देव-आयुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के पांच हेतु हैं सराग संयम, संयमासंयम, बालतपःकर्म, अकाम निर्जरा, देवायुष्य-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय । ४२९. भंते! शुभ-नाम-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! शुभ-नाम-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के पांच हेतु हैं-काया की ऋजुता, भाव की ऋजुता, भाषा की ऋजुता, अविसंवादन योग, शुभ-नाम-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ४३०. भंते! अशुभ-नाम-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है? गौतम! अशुभ-नाम-कर्म-शरीर-प्रयोग-बंध के पांच हेतु हैं काया की अऋजुता, भाव की अऋजुता, भाषा की अऋजुता, विसंवादन योग, अशुभ-नाम-कर्म-शरीर-प्रयोग-नाम-कर्म का उदय। ३२३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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