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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. ९ : सू. ३८५-३९२ गौतम ! औदारिक- शरीर के सर्व-बंधक जीव सबसे अल्प हैं। अबंधक विशेषाधिक हैं। देश- बंधक असंख्य गुण हैं। वैक्रिय - शरीर - प्रयोग की अपेक्षा ३८६. भंते! वैक्रिय- शरीर प्रयोग-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम ! वैक्रिय - शरीर - प्रयोग-बंध दो प्रकार का प्रज्ञप्त है - जैसे - एकेन्द्रिय- वैक्रिय - शरीर-प्रयोग-बंध, पंचेन्द्रिय- वैक्रिय- शरीर-प्रयोग-बंध । ३८७. यदि एकेन्द्रिय- वैक्रिय शरीर प्रयोग-बंध है तो क्या वह वायुकायिक- एकेन्द्रिय- शरीर- प्रयोग-बंध है? अवायुकायिक- एकेन्द्रिय- शरीर - प्रयोग - बंध है ? इसी प्रकार इस अभिलाप के अनुसार पण्णवणा के अवगाहन संस्थान नामक पद (पद २१) की भांति वैक्रिय शरीर का भेद वक्तव्य है यावत् पर्याप्तक- सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत वैमानिक- देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर प्रयोग-बंध, अपर्याप्तक- सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत- वैमानिक -देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर-प्रयोग-बंध । ३८८. भंते! वैक्रिय - शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम! वैक्रिय- शरीर-प्रयोग-बंध के तीन हेतु हैं - १. वीर्य सयोग - सद्-द्रव्यता, २. प्रमाद, ३. कर्म-, योग- भव-, आयुष्य - और लब्धि-सापेक्ष- वैक्रिय - शरीर - प्रयोग - नाम-कर्म । " ३८९. वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर-प्रयोग के बंध की पृच्छा । गौतम ! वायुकायिक- एकेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर-प्रयोग-बंध के तीन हेतु हैं - वीर्य - सयोग - सद्- द्रव्यता यावत् लब्धि-सापेक्ष- वैक्रिय - शरीर - प्रयोग - नाम-कर्म । ३९०. भंते! रत्नप्रभा - पृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय- वैक्रिय - शरीर प्रयोग-बंध किस कर्म के उदय से होता है ? गौतम ! रत्नपप्रभा - पृथ्वी - नैरयिक- पंचेन्द्रिय- वैक्रिय - शरीर प्रयोग-बंध के तीन हेतु हैं - वीर्य-सयोग-सद्-द्रव्यता यावत् आयुष्य सापेक्ष-वैक्रिय - शरीर प्रयोग-नाम-कर्म । इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमी की वक्तव्यता । ३९१. तिर्यग्योनिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय - शरीर-प्रयोग-बंध की पृच्छा । गौतम! तिर्यग्योनिक-पंचेन्द्रिय- वैक्रिय- शरीर-प्रयोग-बंध (के तीन हेतु हैं -) वीर्य -सयोग-सद्-द्रव्यता वायुकायिक की भांति वक्तव्य है । इसी प्रकार मनुष्य - पंचेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर- प्रयोग - बंध की वक्तव्यता । असुरकुमार - भवनवासी- देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर-प्रयोग-बंध रत्न-प्रभा-पृथ्वी-नैरयिक की भांति वक्तव्य है । इसी प्रकार यावत् स्तनित-कुमार, वानव्यंतर और ज्योतिष्क की वक्तव्यता। इसी प्रकार सौधर्म - कल्पोपपन्न - वैमानिक यावत् अच्युत-ग्रैवेयक- कल्पातीत - वैमानिक और अनुत्तरोपपातिक - कल्पातीत वैमानिक की वक्तव्यता । ३९२. भंते! वैक्रिय - शरीर प्रयोग-बंध क्या देश -बंध है ? सर्व-बंध है ? गौतम ! देश -बंध भी है, सर्व-बंध भी है। इसी प्रकार वायुकायिक- एकेन्द्रिय- वैक्रिय - शरीर- ३१८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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