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________________ श. ८ : उ. ९ : सू. ३५८-३६५ भगवती सूत्र है, वह ऊंचाई के कारण उच्चय-बंध कहलाता है। इसका कालमान जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्टतः संख्ये काल है । यह है उच्चय-बंध । ३५९. वह समुच्चय-बंध क्या है ? समुच्चय बंध- कूप, तालाब, नदी, द्रह, बावड़ी, पुष्करणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सर, सरपंक्ति, सरसर की पंक्ति, बिल की पंक्ति, देवकुल, सभा, प्रपा, स्तूप, खाई, परिघा, प्राकार, अट्टालक (बुर्ज), चरिका, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, कुटीर, पर्वतगृह, दुकान, दुराहा, तिराहा, चौक, चौराहा, चारों ओर दरवाजे वाला देवल, महापथ और पथ आदि का चूना, चिकनी मिट्टी और शिला के समुच्चय से जो बंध किया जाता है, वह समुच्चय-बंध है । इसका कालमान जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः संख्येय काल है। यह है समुच्चय-बंध । ३६०. वह संहनन - बंध क्या है ? संहनन - बंध दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- देश - संहनन - बंध, सर्व - संहनन - बंध | ३६१. वह देश - संहनन-बंध क्या है ? देश - संहनन - बंध - शकट, रथ, यान, युग्य - गिल्लि, थिल्लि, शिबिका, स्यंदमानिका, तवा, लोह - कटाह, करछी, आसन, शयन, स्तंभ, भांड, पात्र, उपकरण आदि का देश- संहनन बंध होता है । इसका कालमान जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः संख्येय काल है। यह है देश- संहनन-बंध 1 ३६२. वह सर्व संहनन - बंध क्या है ? सर्व संहनन - बंध-क्षीर का उदक आदि से संबंध सर्व संहनन - बंध है । यह है सर्व संहनन- बंध। यह है संहनन-बंध । यह है आलीनकरण-बंध । शरीर की अपेक्षा ३६३. वह शरीर - बंध क्या है ? शरीर बंध दो प्रकार का प्रज्ञप्त है जैसे - पूर्व-प्रयोग-प्रत्ययिक, प्रत्युत्पन्न - प्रयोग-प्रत्ययिक । ३६४. वह पूर्व - प्रयोग - प्रत्ययिक क्या है ? पूर्व - प्रयोग - प्रत्ययिक-नैरयिक आदि संसारस्थ सब जीव विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से अपने प्रदेशों का समुद्घात ( शरीर से बाहर प्रक्षेपण) करते हैं, उस समय जीव- प्रदेशों का बंध (विशेष - विन्यास) उत्पन्न होता है। यह पूर्व - प्रयोग - प्रत्ययिक है । ३६५. वह प्रत्युत्पन्न-प्रयोग - प्रत्ययिक क्या है ? प्रत्युत्पन्न - प्रयोग - प्रत्ययिक - केवल - ज्ञानी अनगार जब केवलि-समुद्घात से समवहत होकर जीव- प्रदेशों का विस्तार कर, उस समुद्घात से प्रतिनिवर्तमान होता है- जीव- प्रदेशों का संकोच करता है, उस समय अंतरालवर्ती मंथ की क्रिया के क्षण में तैजस और कार्मण शरीर का बंध उत्पन्न होता है। इसका कारण क्या है ? समुद्घात से निवृत्ति के समय केवली के जीव- प्रदेश एकत्र (संघात) दशा को प्राप्त होते हैं । यह है प्रत्युत्पन्न - प्रयोग - प्रत्ययिक । यह ह शरीर-बंध । ३१४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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