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________________ श. ८ : उ. ३ : सू. २२०-२२७ भगवती सूत्र २२०. बहुबीज वाले वृक्ष कौनसे हैं? बहुबीज वाले वृक्ष अनेक प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-हडसंधारी-हडजोड़ी, तेंदु-आबनूस, कैथ, आमड़ा, विजौरा, बेल, आंवला, कटहल्ल, अनार, पीपल, गूलर, बड़, खेजड़ी, तून, पीपर, शतावरी, पाकर, कटूमर, धनिया, धधर बेल, तिलिया, बडहर, गुण्डतृण, सिरस, छतिवन, कैथ, लोध, धौं, चंदन, अर्जुन, नीम, धाराकदम्ब, कुड़ा-कदम। ये तथा इस प्रकार के अन्य असंख्येय-जीविक बहुबीज वाले हैं। इनके मूल भी असंख्येय जीव वाले हैं। कंद, स्कंध, त्वचा, शाखा और प्रवाल भी असंख्येय जीव वाले हैं। पत्र प्रत्येक जीव वाले हैं। पुष्प अनेक जीव वाले हैं । फल बहुबीज वाले हैं। ये वृक्ष बहुबीज वाले जीव हैं। ये हैं असंख्येय जीव वाले वृक्ष। २२१. अनंत जीव वाले वृक्ष कौनसे हैं? अनंत जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-आलु, मूली, अदरक, इसी प्रकार सातवें शतक (भगवती, ७/६६) में यावत् थोहर, काली मुसली। ये तथा इस प्रकार के अन्य अनंत जीव वाले वृक्ष हैं। ये हैं अनंत जीव वाले वृक्ष । जीव-प्रदेशों का अन्तर-पद २२२. भंते! कछुआ, कच्छुए की आवलिका, गोह, गोह की आवलिका, बैल, बैल की आवलिका, मनुष्य, मनुष्य की आवलिका, भैंसा, भैंसे की आवलिका-इन जीवों के शरीर के दो, तीन अथवा संख्येय खण्डों में छिन्न हो जाने पर जो अंतराल होता है, क्या वह उन जीव-प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? हां, स्पृष्ट होता है। २२३. भंते! कोई पुरुष जीव के छिन्न अवयवों के अंतराल का हाथ, पैर अथवा अंगुली से तथा शलाका, काष्ठ अथवा खपाची से स्पर्श, संस्पर्श, आलेखन, विलेखन करता है अथवा किसी अन्य तीखे शस्त्र से उसका आच्छेदन, विच्छेदन करता है अथवा अग्नि से उसको जलाता है। क्या ऐसा करता हुआ वह उन जीव-प्रदेशों के लिए किञ्चित् आबाधा अथवा विशिष्ट बाधा उत्पन्न करता है अथवा उनका छविच्छेद करता है? यह अर्थ संगत नहीं है, उस अन्तर में शस्त्र का संक्रमण नहीं होता। चरम-अचरम-पद २२४. भंते! पृथ्वियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पृथ्वियां आठ प्रज्ञप्त हैं जैसे–रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमी और इषत्-प्राग्भारा । २२५. भंते! यह रत्नप्रभा-पृथ्वी क्या चरम है ? अथवा अचरम है? यहां पण्णवणा का चरम-पद निरवशेष रूप में वक्तव्य है यावत्२२६. भंते! वैमानिक-देव स्पर्श-चरम से क्या चरम हैं अथवा अचरम हैं? गौतम! चरम भी हैं, अचरम भी हैं। २२७. भंते! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है। २९२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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