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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. २ : सू. १७३-१८० वक्तव्यता अवधि-ज्ञान - लब्धिकों के समान है । मनः पर्यव ज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता मनः पर्यव-ज्ञान- लब्धिकों के समान है। केवल ज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता केवल - ज्ञान - लब्धिकों के समान है। मति - अज्ञान-साकारोपयुक्त जीवों के तीन अज्ञान की भजना है। इसी प्रकार श्रुत- अज्ञान साकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता । विभंग ज्ञान साकारोपयुक्त- जीवों के नियमतः तीन अज्ञान होते हैं। १७४. भंते! अनाकारोपयुक्त जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं ? गौतम ! अनाकारोपयुक्त जीवों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। इसी प्रकार चक्षु-दर्शन-, अचक्षु दर्शन-अनाकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता, इतना विशेष है उनके चार ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है । १७५. अवधि-दर्शन-अनाकारोपयुक्त जीवों की पृच्छा । गौतम ! अवधि-दर्शन-अनाकारोपयुक्त जीव ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें कुछेक तीन ज्ञान वाले हैं और कुछेक चार ज्ञान वाले हैं। जो तीन ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुत-ज्ञानी और अवधि- ज्ञानी हैं। जो चार ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मनः पर्यवज्ञानी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः तीन अज्ञान वाले हैं, जैसे - मति- अज्ञानी, श्रुत- अज्ञानी, विभंग ज्ञानी। केवल दर्शन अनाकारोपयुक्त जीवों की वक्तव्यता केवल - ज्ञान- लब्धिकों के समान है। योग की अपेक्षा १७६. भंते! योग - युक्त जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? काय - युक्त जीव की भांति वक्तव्य हैं। इसी प्रकार मन-योगी, वचन-योगी, काय-योगी की वक्तव्यता । अयोगी सिद्ध की भांति वक्तव्य हैं। लेश्या की अपेक्षा १७७. भंते! लेश्या युक्त-जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? - काय - युक्त जीव की भांति वक्तव्यता । १७८. भंते! कृष्ण - लेश्या वाले जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं ? इन्द्रिय-युक्त - जीव की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् पद्म- लेश्या और शुक्ल लेश्या वाले जीव लेश्या - युक्त जीव की भांति वक्तव्य हैं । लेश्या - मुक्त-जीव सिद्ध की भांति वक्तव्य हैं। कषाय की अपेक्षा १७९. भंते! कषाय- युक्त जीव क्या ज्ञानी हैं ? अज्ञानी हैं ? इन्द्रिय-युक्त-जीव की भांति वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् लोभ- कषायी वक्तव्य हैं। १८०. भंते! कषाय-मुक्त जीव क्या ज्ञानो हैं? अज्ञानी हैं ? २८५
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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