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________________ श. ८ : उ. २ : सू. ८६-९३ भगवती सूत्र गौतम! आशीविष दा प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-जाति-आशीविष और कर्म-आशीविष । ८७. भन्ते! जाति-आशीविष कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! चार प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-वृश्चिक-जाति-आशीविष, मंडूक-जाति-आशीविष, उरग-जाति-आशीविष और मनुष्य-जाति-आशीविष। ८८. भन्ते! वृश्चिक-जाति-आशीविष का कितना विषय प्रज्ञप्त है? गौतम! वृश्चिक-जाति-आशीविष अर्ध-भरत-प्रमाण-शरीर को अपने विष से व्याप्त और परिपूर्ण करने में समर्थ है। यह विषय विष की शक्ति की दृष्टि से बतलाया गया है, क्रियात्मक रूप में न तो ऐसा किया है, न करता है और न करेगा। ८९. भन्ते! मण्डूक-जाति-आशीविष का कितना विषय प्रज्ञप्त है? गौतम! मंडूक-जाति-आशीविष भरत-प्रमाण शरीर को अपने विष से व्याप्त और परिपूर्ण करने में समर्थ है। यह विषय विष की शक्ति की दृष्टि से बतलाया गया है। क्रियात्मक रूप में न तो ऐसा किया है, न करता है और न करेगा। ९०. भन्ते! उरग-जाति-आशीविष का कितना विषय प्रज्ञप्त है? गौतम! उरग-जाति-आशीविष जम्बूद्वीप-प्रमाण-शरीर को अपने विष से व्याप्त और परिपूर्ण करने में समर्थ है। यह विषय विष की शक्ति की दृष्टि से बतलाया गया है। क्रियात्मक रूप में न तो ऐसा किया है, न करता है और न करेगा। ९१. भन्ते! मनुष्य-जाति-आशीविष का कितना विषय प्रज्ञप्त है? गौतम! मनुष्य-जाति-आशीविष समयक्षेत्र(अढाई द्वीप)-प्रमाण-शरीर को अपने विष से व्याप्त और परिपूर्ण करने में समर्थ है। यह विषय विष की शक्ति की दृष्टि से बतलाया गया है। क्रियात्मक रूप में न तो ऐसा किया है, न करता है और न करेगा। ९२. यदि कर्म-आशीविष है तो क्या नैरयिक-कर्म-आशीविष है? तिर्यग्योनिक-कर्म आशीविष है? मनुष्य-कर्म-आशीविष है? अथवा देव-कर्म-आशीविष है? गौतम! नैरयिक-कर्म-आशीविष नहीं है। तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष भी है, मनुष्य-कर्म-आशीविष भी है और देव-कर्म-आशीविष भी है। ९३. यदि तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष है तो क्या एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष है यावत् पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष है? गौतम! एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष नहीं है यावत् चतुरिन्द्रिय तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष नहीं है। पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष है। यदि पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष है तो क्या संमूर्छिम-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिककर्म-आशीविष है? अथवा गर्भावक्रान्तिक-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-कर्म-आशीविष है? इस प्रकार जैसी पण्णवणा (२१/५३) में वैक्रिय-शरीर के भेद की वक्तव्यता है वैसे ही यहां वक्तव्य है यावत् पर्याप्त-संख्येय-वर्ष-आयुष्य वाले गर्भावक्रान्तिक-पंचेन्द्रिय २७४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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