SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. ८ : उ. १ : सू. १५-२१ भगवती सूत्र गौतम! भवनवासी-देव-पचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत दस प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-असुरकुमार-देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत यावत् स्तनितकुमार-देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत । १६. इसी प्रकार इस अभिलाप के अनुसार वानमंतर आठ प्रकार के प्रज्ञप्त हैं-पिशाच यावत् गंधर्व। ज्योतिष्क पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-चन्द्रविमान- ज्योतिष्क यावत् ताराविमान-ज्योतिष्क-देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत। वैमानिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–कल्पोपग-वैमानिक और कल्पातीतग-वैमानिक। कल्पोपग-वैमानिक बारह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सौधर्म-कल्पोपग-वैमानिक यावत् अच्युत-कल्पोपग-वैमानिक। कल्पातीतग-वैमानिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे प्रैवेयक-कल्पातीतग-वैमानिक, अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक। ग्रैवेयक-कल्पातीतग-वैमानिक नौ प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सबसे नीचे वाले -अवेयक-कल्पातीतग-वैमानिक यावत् सबसे ऊपर वाले ग्रैवेयक-कल्पातीग-वैमानिक । १७. भन्ते! अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-विजय अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत यावत् सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव -पंचेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत। पर्याप्त-अपर्याप्त की अपेक्षा प्रयोग-परिणति-पद १८. भन्ते! सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–पर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत और अपर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत। इसी प्रकार बादर-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत यावत् वनस्पति-कायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इनमें से प्रत्येक दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्म और बादर के दो-दो प्रकार हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । १९. द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत की पृच्छा। गौतम! द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पर्याप्तक-द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत और अपर्याप्तक-द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता। २०. रत्नप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत की पृच्छा। गौतम! रत्नप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे पर्याप्तक-रत्नप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत और अपर्याप्तक-रत्नप्रभा-पृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी-पृथ्वी-नैरयिक-प्रयोग-परिणत। २१. सम्मूर्च्छिम-जलचर-तिर्यंच की पृच्छा। गौतम! संमूर्च्छिम-जलचर-तिर्यंच दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इसी प्रकार गर्भावक्रान्तिक-जलचर-तियच की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् संमूर्छिम-खेचर २६२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy