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________________ भगवती सूत्र श. ७: उ. ७ : सू. १४७-१५२ गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ, इसलिए वह भोगी है। वह भोगों का परित्याग करता हुआ महानिर्जरा और महापर्यवसान को प्राप्त होता है । बल, १४८. भन्ते ! परम-अवधि- ज्ञानी मनुष्य, जो उसी भव में सिद्ध होने यावत् सब दुःखों को अन्त करने में योग्य हैं, भन्ते ! वह क्षीणभोगी - दुर्बल शरीर वाला है। वह उत्थान, कर्म, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ नहीं है । भन्ते ! क्या आप भी इस अर्थ को इस प्रकार कहते हैं ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ है, इसलिए वह भोगी है। वह भोगों का परित्याग करता हुआ महानिर्जरा और महापर्यवसान को प्राप्त होता है । १४९. भन्ते! केवल-ज्ञानी मनुष्य जो उसी भव में सिद्ध होने यावत् सब दुःखों का अन्त करने के योग्य है, भन्ते ! वह क्षीण- भोगी - दुर्बल शरीर वाला है। वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ नहीं है । भन्ते ! क्या आप भी इस अर्थ को इस प्रकार कहते हैं ? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है । वह उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम से विपुल भोग्य भोगों का भोग करने में समर्थ है, इसलिए वह भोगी है। वह भोगों का परित्याग करता हुआ महानिर्जरा और महापर्यवसान को प्राप्त होता है । अकामनिकरण - वेदना-पद १५०. भन्ते ! जो ये अमनस्क प्राणी, जैसे- पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक (पांच स्थावर ) छठे वर्ग के कुछ त्रस - जीव हैं-ये अन्ध हैं, मूढ़ हैं, अन्धकार में प्रविष्ट हैं, तमपटल और मोहजाल में आच्छादित हैं, अकाम-निकरण - अज्ञानहेतुक वेदना का वेदन करते हैं, क्या यह कहा जा सकता है ? हां, गौतम ! जो ये अनमस्क प्राणी यावत् अकाम-निकरण वेदना का वेदन करते हैं - यह कहा सकता है। १५१. भन्ते ! क्या प्रभु – समनस्क भी अकाम-निकरण वेदना का वेदन करते हैं ? हां, करते हैं। १५२. भन्ते ! प्रभु भी अकाम-निकरण वेदना का वेदन कैसे करते हैं ? गौतम ! जो दीप के बिना अन्धकार रूपों 'देखने में समर्थ नहीं है, जो अपने सामने के रूपों को भी चक्षु का व्यापार किए बिना देखने में समर्थ नहीं है, जो अपने पृष्ठवर्ती रूपों को पीछे की ओर मुड़े बिना देखने में समर्थ नहीं है, जो अपने पार्श्ववर्ती रूपों का अवलोकन किए बिना देखने में समर्थ नहीं है, जो अपने ऊर्ध्ववर्ती रूपों का अवलोकन किए बिना देखने में समर्थ नहीं है, जो अपने अधोवर्ती रूपों का अवलोकन किऐ बिना देखने में समर्थ नहीं है, गौतम ! यह प्रभु भी अकाम-निकरण वेदना का वेदना करता है। २४४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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