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________________ भगवती सूत्र श. ७: उ. ६ : सू. ११८-१२० गौतम ! उस काल में भरत क्षेत्र की भूमि अंगारों, मुर्मुरों (भस्ममिश्रित - अग्निकणों), तपी हुई राख एवं तपे हुए तवे के समान हो जाएगी। वह ताप से तप्त और अग्नि तुल्य हो जाएगी । वह बहुल धूल वाली, बहुल रज वाली, बहुल पंक वाली, बहुल सघन कीचड़ वाली और बहुल चरण-प्रमाण कीचड़ वाली हो जायेगी । भूमि पर चलने वाले अनेक प्राणियों के लिए उस पर चलना कठिन हो जाएगा। ११९. भन्ते ! उस काल में भरत क्षेत्र के मनुष्यों का आकार और भाव का अवतरण कैसा होगा ? गौतम ! उस काल में भरतक्षेत्र के मनुष्य दुःस्वभाव वाले, दुर्वर्ण, दुर्गन्ध, दूरस, दुःस्पर्श, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ, अकमनीय, तथा हीन स्वर, दीन स्वर, अनिष्ट स्वर, अकान्त स्वर, अप्रिय स्वर, अशुभ स्वर, अमनोज्ञ स्वर, अकग्रनीय स्वर वाले होंगे । उनका वचन दूसरों द्वारा आदेय नहीं होगा। वे निर्लज्ज़ तथा कूट, कपट, कलह, वध, बंध और वैर में संलग्न रहेंगे । वे मर्यादा का अतिक्रमण करने में मुखिया, अकरणीय करने में सदा उद्यत, बड़ों के प्रति अवश्य करणीय विनय से शून्य होंगे। उनका रूप विकल होगा, उनके नख, केश, श्मश्रु, रोम बढे हुए होंगे, वे काले वर्ण वाले होंगे, थे अत्यन्त रूक्ष और गटमैले वर्ण वाले फटे हुए सिर वाले, पीले और सफेद केश वाले बहुत स्नायुओं से गूंथे हुए होने के कारण दुर्दर्शनीय रूप वाले, सिकुडी हुई वलि-तरंगों (झुर्रियों) से परिवेष्टित प्रत्येक अंग वाले, जरा-परिणत वृद्ध मनुष्यों के समान, संख्या में स्वल्प और सड़ी हुई दांतों की श्रेणी वाले, घड़े के मुख की भांति छोटे होठ वाले, तुच्छ मुख, विषम नेत्र, टेढी नाक, टेढे और झुर्रियों से विकृत बने हुए भयानक मुख वाले, कच्छू (खुजली) और कसर ( गीली खुजली) से अभिभूत, खर- तीक्ष्ण नखों से खुजलाने के कारण क्षत-विक्षत बनें हुए शरीर वाले, दाद, कुष्ठ और सेंहुआ रोग से फटी और रूखी चमड़ी वाले, चितकवरे अंग वाले, टिड्डे की जैसे टेढ़ी-मेढ़ी गति, टेढ़े-मेढ़े सन्धि-बन्धन, हड्डियों की अव्यवस्थित रचना और दुर्बल शरीर वाले, दोषपूर्ण संहनन, दोषपूर्ण शरीरप्रमाण और दोषपूर्ण संस्थान वाले, कुरूप, कुत्सित आसन, कुत्सित शय्या और कुत्सित भोजन-वाले, शुचि करने वाले, अनेक व्याधियों से पीड़ित प्रत्येक अंग वाले, स्खलित और विह्वल गति वाले, निरुत्साह, सत्त्व से रहित, चेष्टा - शून्य, तेज-शून्य बार-बार सर्दी-गर्मी, रूक्ष और कठोर बायु से व्याप्त होने वाली मलिन धूलि और रजकरणों से भरे हुए प्रत्येक अंग वाले होंगे। उनका क्रोध, मान, माया और लोभ प्रबल होगा। उनका दुःख दुःखानुबन्धी होगा। वे प्रायः धर्म-संज्ञा से शून्य और सम्य्वत्व-रहित होंगे। उनका शरीर रत्नि (बंधी मुट्ठी वाला हाथ ) जितना होगा। उनकी उत्कृष्ट आयु सोलह अथवा बीस वर्ष की होगी। वे पुत्र-पौत्र आदि में बहुत स्नेह रखने वाले होंगे। ये गंगा, सिंधु दो महानदियों तथा वैताढ्य पर्वत के परिपार्श्व में होने वाले कुछ दिलों अथवा गुफाओं के आश्रय में रहेंगे। उनके वहत्तर कुटुम्ब आगामी मनुष्य जाति के लिए बीज़ और वीजगात्र बचेंगे। १२०. भन्ते ! मनुष्य किसका आहार करेंगे ? गौतम ! उस काल और उस समय गंगा और सिंधु -दो गहानदियों का विस्तार रथ के एथ २४०
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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