SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. ७ : उ. २ : सू. ३५-४४ भगवती सूत्र ३५. भन्ते! देश-उत्तर-गुण-प्रत्याख्यान के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं? गौतम! सात प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. दिग्वत, २. उपभोग-परिभोग-परिमाण, ३. अनर्थदण्ड-विरमण, ४. सामायिक, ५. देशावकाशिक, ६. पौषधोपवास, ७. अतिथि-संविभाग। अपश्चिममारणान्तिकसंलेखना-जोषणा-आराधना। प्रत्याख्यानी-अप्रत्याख्यानी-पद ३६. भन्ते! जीव क्या मूल-गुण-प्रत्याख्यानी हैं? उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी हैं? अप्रत्याख्यानी गौतम! जीव मूल-गुण-प्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी ३७. भन्ते! नैरयिक क्या मूल-गुण-प्रत्याख्यानी है? पृच्छा। गौतम! नैरयिक मूल-गुण-प्रत्याख्यानी नहीं है, उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी नहीं हैं, अप्रत्याख्यानी है। ३८. चतुरिन्द्रय-जीवों तक इसी प्रकार वक्तव्य है। ३९. पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक और मनुष्य जीव की भांति वक्तव्य है। वानमन्तर-, ज्योतिष्क और वैमानिक-देव नैरयिक की भांति वक्तव्य है। ४०. भन्ते! इन मूल-गुण-प्रत्याख्यानी, उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? गौतम! मूल-गुण-प्रत्याख्यानी जीव सबसे अल्प हैं, उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी जीव उनसे असंख्येयगुणा अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी जीव उनसे अनन्तगुणा अधिक हैं। ४१. भन्ते! इन पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में पृच्छा। गौतम! पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में सबसे अल्प मूल-गुण-प्रत्याख्यानी हैं, उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं। ४२. भन्ते! मूल-गुण-प्रत्याख्यानी मनुष्यों में पृच्छा। गौतम! मूल-गुण-प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे अल्प हैं, उत्तर-गुण-प्रत्याख्यानी उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येय-गुणा अधिक हैं। ४३. भन्ते! जीव क्या सर्व-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी हैं? देश-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी हैं? अप्रत्याख्यानी हैं? गौतम! जीव सर्व-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी भी हैं, देश-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं। ४४. नैरयिकों की पृच्छा। गौतम! नैरयिक सर्व-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी नहीं हैं, देश-मूल-गुण-प्रत्याख्यानी नहीं हैं, अप्रत्याख्यानी हैं। २३०
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy