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________________ भगवती सूत्र श. ६ : उ. १० : सू. १७८-१८६ गौतम ! जो जीता है, वह नियमतः जीव है और जीव स्यात् जीता है, स्यात् नहीं जीता। १७९. भन्ते ! क्या जो जीता है, वह नैरयिक है ? अथवा जो नैरयिक है, वह जीता है ? गौतम! नैरयिक नियमतः जीता है और जो जीता है, वह स्यात् नैरयिक है, स्यात् नैरयिक नहीं है । १८०. इस प्रकार वैमानिक तक सभी दण्डक वक्तव्य हैं। १८१. भन्ते ! क्या जो भवसिद्धिक है, वह नैरयिक है ? अथवा जो नैरयिक है, वह भवसिद्धिक है ? गौतम ! जो भवसिद्धिक है, वह स्यात् नैरयिक है, स्यात् नैरयिक नहीं है । नैरयिक भी स्यात् भवसिद्धिक है, स्यात् भवसिद्धिक नहीं है । १८२. इसी प्रकार वैमानिक तक सभी दण्डक वक्तव्य है । वेदना-पद १८३. भन्ते! अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं सब प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एकान्त दुःखमय वेदना का वेदन करते हैं । १८४. भन्ते ! इस प्रकार का वक्तव्य कैसे हैं ? गौतम ! जो अन्ययूथिक ऐसा आख्यान करते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं वे मिथ्या कहते हैं। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान करता हूं यावत् प्ररूपणा करता हूं-कुछ प्राण, भूत, जीव, और सत्त्व एकान्त दुःखमय वेदना का वेदन करते हैं और कभी-कभी सुख का वेदन करते हैं। कुछ प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एकान्त सुखमय वेदना का वेदन करते हैं और कभी-कभी दुःख का वेदन करते हैं। कुछ प्राण, भूत, जीव और सत्त्व विमात्रा से वेदना का वेदन करते हैं - कभी सुख का वेदन करते हैं, कभी दुःख का वेदन करते हैं । १८५. यह किस अपेक्षा से ? गौतम ! नैरयिक एकान्त दुःखमय वेदना का वेदन करने हैं, कभी-कभी सुख का वेदन करते हैं । भवनपति, वानमन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एकान्त सुख का वेदन करते हैं, कभी-कभी दुःख का वेदन करते हैं। पृथ्वीकायिक-जीवों से लेकर मनुष्य तक सभी जीव विमात्रा से वेदना का वेदन करते हैं - कभी सुख का वेदन करते हैं, कभी दुःख का वेदन करते हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जाता है । नैरयिक आदि जीवों के आहार का पद १८६. भन्ते ! नैरयिक जीव जिन पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार करते हैं, क्या अपने शरीर के क्षेत्र में अवगाढ पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार करते हैं? क्या अनन्तर क्षेत्र में अवगाढ़ पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार करते हैं ? क्या परम्पर- क्षेत्र में अवगाढ़ पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार करते हैं ? गौतम ! वे अपने शरीर के क्षेत्र में अवगाढ़ पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार करते हैं, अनन्तर - क्षेत्र में अवगाढ़ पुद्गलों को आत्मा से ग्रहण कर आहार नहीं करते, परम्पर-क्षेत्र में २२१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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