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________________ भगवती सूत्र देवपरिघ, श. ६ : उ. ५ : सू. ८६-९२ लोकान्धकार, लोकतमिस्र, देवान्धकार, देवतमिस्र, देवारण्य, देवव्यूह, देवप्रतिक्षोभ, अरुणोदक समुद्र । ८७. भन्ते ! तमस्काय क्या पृथ्वी का परिणमन है ? जल का परिणमन है ? जीव का परिणमन है ? पुद्गल का परिणमन है ? गौतम ! तमस्काय पृथ्वी का परिणमन नहीं है, जल का परिणमन भी है, जीव का परिणमन भी है, पुद्गल का परिणमन भी है। ८८. भन्ते! क्या तमस्काय में सब प्राण, भूत, जीव और सत्त्व पृथ्वीकाय रूप में यावत् त्रसकाय रूप में उपपन्न पूर्व हैं ? हां, गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, बादर पृथ्वीकायिक और बादर अग्निकायिक के रूप में उपपन्न नहीं हुए । कृष्णराज - पद ८९. भन्ते ! कृष्णराजियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ? गौतम! आठ कृष्णराजियां प्रज्ञप्त हैं । ९०. भन्ते ! ये आठ कृष्णराजियां कहां प्रज्ञप्त ? गौतम ! सनत्कुमार- और माहेन्द्र - कल्प ऊपर ब्रह्मलोक - कल्प में रिष्ट-विमान- प्रस्तर के समानान्तर आखाटक के आकार वाली समचतुरस्र - संस्थान से संस्थित आठ कृष्णराजियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-दो पूर्व में, दो पश्चिम में, दो दक्षिण में और दो उत्तर में । पूर्व दिशा में भीतरी कृष्णराज दक्षिण दिशा में बाहरी कृष्णराजि का स्पर्श करती है। दक्षिण दिशा की भीतरी कृष्णराज पश्चिम दिशा की बाहर कृष्णराजि का स्पर्श करती | पश्चिम दिशा की भीतरी कृष्णराज उत्तर दिशा की बाहरी कृष्णराजि का स्पर्श करती है । उत्तर दिशा की भीतरी कृष्णराज पूर्व दिशा की बाहरी कृष्णराजि का स्पर्श करती है । दो पूर्व और पश्चिम की बाहरी कृष्णराजियां षट्कोण हैं, दो उत्तर और दक्षिण की बाहरी कृष्णराजियां त्रिकोण हैं, दो पूर्व और पश्चिम की भीतरी कृष्णराजियां चतुष्कोण हैं, दो उत्तर और दक्षिण के भीतरी कृष्णराजियां चतुष्कोण हैं । संग्रहणी गाथा पूर्व और पश्चिम की बाहरी कृष्णराजियां षट्कोण हैं, दक्षिण और उत्तर की बाहरी कृष्णराजियां त्रिकोण हैं और सभी भीतरी कृष्णराजियां चतुष्कोण हैं । ९१. भन्ते! कृष्णराजियों का आयाम ( लम्बाई) कितना, विष्कम्भ (चौड़ाई) कितना और परिक्षेप (परिधि) कितना प्रज्ञप्त है ? गौतम ! उनका आयाम असंख्येय-हजार योजन, विष्कम्भ संख्येय- हजार योजन और परिक्षेप असंख्येय- हजार योजन प्रज्ञप्त हैं । ९२. भन्ते ! कृष्णराजियां कितनी बड़ी प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप द्वीप यावत् कोई महान् ऋद्धि वाला यावत् महान् अनुभाव वाला देव २०६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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