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________________ भगवती सूत्र श. ५ : उ. ७ : सू. १८९-१९९ प्रदेश) का परिग्रह होता है। जल, स्थल, बिल, गफा और लयन (पर्वत के उकेरा हुआ गृह) का परिग्रह होता है। उज्झर, निर्झर, तलैया, जल का छोटा गढा, जल-प्रणाली का परिग्रह होता है। कुआ, तालाब, द्रह, नदी, बावड़ी, पुष्करिणी, नहर, वक्राकार नहर, सर, सरपंक्ति, सरसरपंक्ति और बिलपंक्ति का परिग्रह होता है। आराम, उद्यान, कानन, वन, वनषण्ड और वनराजि का परिग्रह होता है। देवल,सभा, प्रपा, स्तूप, खाई और परिखा का परिग्रह होता है। प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार और गोपुर का परिग्रह होता है। प्रासाद, घर, शरण, लयन और आपण का परिग्रह होता है। दुराहे, तिराहे, चौराहे, चौक, चौहट्टे, महापथ और पथ का परिग्रह होता है। शकट, रथ, यान, युग्य, डाली, बग्घी, शिबिका और स्यन्दमानिका का परिग्रह होता है। तवा, लोहकटाह, करछी का परिग्रह होता है। भवन का परिग्रह होता है। देवों,देवियों, मनुष्यों, मानुषियों, नर-तिर्यञ्चों और स्त्री-तिर्यञ्चों का परिग्रह होता है। आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, सचित्त-, अचित्त- और मिश्र-द्रव्यों का परिग्रह होता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यक्योनिक-जीव आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं, आरम्भ और परिग्रह से मुक्त नहीं होते। १९०. जिस प्रकार तिर्यक्योनिक-जीवों की वक्तव्यता है, उसी प्रकार मनुष्यों के आरम्भ और परिग्रह वक्तव्य हैं। वानमन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों की वक्तव्यता भवनवासी-देवों की भांति ज्ञातव्य है। हेतु-पद १९१. हेतु के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं। जैसे-हेतु को जानता है, हेतु को देखता है, हेतु पर सम्यक् श्रद्धा करता है, हेतु को प्राप्त करता है और सहेतुक छद्मस्थ-मरण से मरता है। १९२. हेतु के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-हेतु से जानता है यावत् सहेतुक छद्मस्थ-मरण से मरता है। १९३. हेतु के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-हेतु को नहीं जानता यावत् सहेतुक अज्ञान-मरण से मरता है। १९४. पांच प्रकार के हेतु (हेतु-पुरुष) प्रज्ञप्त हैं, जैसे-हेतु से नहीं जानता है, यावत् हेतु से अज्ञान-मरण से मरता है। १९५. पांच प्रकार के अहेतुक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-निर्हेतुक पदार्थ को जानता है और निर्हेतुक केवलि-मरण से मरता है। १९६. पांच प्रकार के अहेतु प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अहेतु से जानता है यावत् निर्हेतुक केवलि-मरण से मरता है। १९७. पांच प्रकार के अहेतु प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अहेतु को नहीं जानता यावत् निर्हेतुक छद्मस्थ मरण से मरता है। १९८. पांच प्रकार के अहेतु प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अहेतु से नहीं जानता है यावत् निर्हेतुक छद्मस्थ मरण से मरता है। १९९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। १८१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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