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________________ भगवती सूत्र श. ५ : उ. ४ : सू. १०२-१०८ अपर्याप्तक हैं, वे न जानते हैं, न देखते हैं। इनमें जो पर्याप्तक हैं, वे जानते - देखते हैं । यह किस अपेक्षा से ? गौतम! पर्याप्तक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- अनुपयुक्त और उपयुक्त । इनमें जो अनुपयुक्त हैं, वे न जानते हैं, न देखते हैं। इनमें जो उपयुक्त हैं, वे जानते देखते हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है कुछ देव जानते-देखते हैं, कुछ देव नहीं जानते, नहीं देखते। अनुत्तरोपपातिक देवों द्वारा केवली के साथ आलाप का पद १०३. भंते! अनुत्तरोपपातिक - देव अपने विमानों में रहते हुए ही मनुष्य-लोक में स्थित केवली के साथ आलाप अथवा संलाप करने में समर्थ हैं ? हां, समर्थ हैं। १०४. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- अनुत्तरोपपातिक - देव अपने विमानों में रहते हुए ही मनुष्य-लोक में स्थित केवली के साथ आलाप अथवा संलाप करने में समर्थ है ? गौतम ! अनुत्तरोपपातिक - देव अपने विमानों में रहते हुए ही जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण पूछते हैं, मनुष्य-लोक में स्थित केवली उस अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण का उत्तर देते हैं । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-अनुत्तरोपपातिक - देव अपने विमानों से रहते हुए ही मनुष्य-लोक में स्थित केवली के साथ आलाप अथवा संलाप करने में समर्थ हैं। १०५. भन्ते ! मनुष्य-लोक में स्थित केवली जिस अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण का उत्तर देते हैं, उसे अपने विमानों में रहते हुए अनुत्तरोपपातिक - देव जानते-देखते हैं ? हां, जानते-देखते हैं। १०६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - मनुष्य-लोक में स्थित केवली जिस अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण का उत्तर देते हैं, उसे अपने विमानों में रहते हुए अनुत्तरोपपातिक - देव जानते - देखते हैं ? गौतम ! उन देवों को अनन्त मनो द्रव्य की वर्गणाएं लब्ध प्राप्त और अभिसमन्वागत हो जाती है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - मनुष्य-लोक में स्थित केवली जिस अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण का उत्तर देते हैं, उसे अपने विमानों में रहते हुए अनुत्तरोपपातिक - देव जानते - देखते हैं । १०७. भन्ते! अनुत्तपपातिक - देव क्या उदीर्ण (उत्कट) मोह वाले हैं ? उपशान्त- मोह वाले हैं? क्षीण - मोह वाले हैं ? गौतम ! वे उदीर्ण मोह वाले नहीं है, उपशान्त- मोह वाले हैं, क्षीण-मोह वाले नहीं हैं ? केवलियों के इन्द्रिय-ज्ञान का निषेध-पद १०८. भन्ते ! क्या केवली आदान (इन्द्रियों) गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। १६६ द्वारा जानता देखता है ?
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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