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________________ भगवती सूत्र श. ५ : उ. ४ : सू. ८३-८८ ८३. उस काल और उस समय में महाशुक्र - कल्प के महासामान विमान से महर्द्धिक यावत् महान् सामर्थ्य वाले दो देव श्रमण भगवान् महावीर के पास प्रगट हुए वे देव श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं और मानसिक स्तर पर ही यह इस प्रकार का प्रश्न पूछते हैं ८४. भन्ते! आपके कितने सौ अन्तेवासी सिद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे ? उन देवों द्वारा मानसिक स्तर पर प्रश्न उपस्थित करने में श्रमण भगवान् महावीर उन देवों को मानसिक स्तर पर ही यह इस प्रकार का उत्तर देते हैं - देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ अन्तेवासी सिद्ध होंगे यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे । वे देव श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा मानसिक स्तर पर पूछे गए प्रश्नों का मानसिक स्तर पर ही इस प्रकार का उत्तर दिए जाने पर वे देव हृष्ट-तुष्ट चित्त वाले, आनन्दित, नन्दित, प्रीतिपूर्ण मन वाले और परम सौमनस्य युक्त हो गए। हर्ष से उनका हृदय फूल गया । वे श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं। वन्दन - नमस्कार कर मानसिक स्तर पर ही शुश्रुषा और नमस्कार की मुद्रा में उनके सम्मुख सविनय बद्धाञ्जलि हो कर पर्युपासना कर रहे हैं। ८५. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार भगवान् महावीर के न अति दूर और न अति निकट, ऊर्ध्वजानु अधः सिर ( उकडू आसन की मुद्रा में) और ध्यान-कोष्ठ में लीन होकर संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए रह रहे हैं । ध्यानान्तरिका में वर्तमान उन भगवान गौतम के यह इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ - महर्द्धिक यावत् महान् सामर्थ्यवान दो देव श्रमण भगवान् महावीर के पास प्रगट हुए हैं, मैं नहीं जानता कि वे देव किस कल्प, स्वर्ग अथवा विमान से किस प्रयोजन के लिए यहां आए हैं ? इसलिए मैं श्रमण भगवान् महावीर के पास जाऊं, उन्हें वन्दन - नमस्कार करूं यावत् पर्युपासना करूं और इन इस प्रकार के प्रश्नों को पूछूंगा, ऐसा सोच कर वे संप्रेक्षा करते हैं, संप्रेक्षा कर उठने की मुद्रा में उठते हैं । उठ कर जहां श्रमण भगवान् महावीर हैं, वहां आते हैं यावत् पर्युपासना करते 1 ८६. गौतम ! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर श्रमण भगवान महावीर गौतम से इस प्रकार बोले - गौतम ! तुम ध्यानान्तरिका में वर्तमान थे तब तुम्हारे यह इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ और तुम शीघ्र ही मेरे निकट आ गए, गौतम ! क्या यह अर्थ संगत है ? हां, यह संगत है। गौतम! जाओ, ये देव ही तुम्हें इन इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देंगें । ८७. भगवान् गौतम श्रमण भगवान महावीर से अनुज्ञा प्राप्त होने पर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, जहां वे देव हैं वहां जाने का संकल्प करते हैं। ८८. वे देव भगवान् गौतम को आत हुए देखते हैं। देख कर वे हर्षित सन्तुष्ट चित्तवाले, १६३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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