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________________ भगवती सूत्र श. ३ : उ. २ : सू. ८५-९३ ८५. भन्ते! क्या असुरकुमार-देवों की गति का विषय तिरछे लोक में प्रज्ञप्त हैं? हां, है। ८६. भन्ते! तिरछे लोक में असुरकुमार-देवों की गति का विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! उनकी गति का विषय असंख्य द्वीप-समुद्रों तक है। नन्दीश्वरवर द्वीप तक वे गऐ हैं और जाएंगे। ८७. भन्ते! असुरकुमार-देव नन्दीश्वरवर द्वीप तक गए हैं और जाएंगे, इसका प्रत्यय क्या है? गौतम! जो ये अर्हत् भगवान् हैं, इनके जन्मोत्सव, अभिनिष्क्रमण-उत्सव, केवलज्ञानोत्पत्ति-उत्सव अथवा परिनिर्वाण-उत्सव के अवसर पर इन चार प्रत्ययों से असुरकुमार-देव नन्दीश्वरवर द्वीप तक गए हैं और जाएंगे। ८८. भन्ते! क्या असुरकुमार-देवों की गति का विषय ऊर्ध्व-लोक में है? हां, है। ८९. भन्ते! ऊर्ध्व-लोक में असुरकुमार-देवों की गति का विषय कितना है? गौतम! ऊर्ध्व-लोक में असुरकुमार देवों की गति का विषय अच्युत कल्प तक है। सौधर्म कल्प तक वे गए हैं और जाएंगे। ९०. भन्ते! असुरकुमार-देव सौधर्म-कल्प में गए हैं और जाएंगे इसका प्रत्यय क्या है? गौतम! असुरकुमार-देवों का सौधर्म-कल्पवासी देवों के साथ भवप्रत्ययिक वैरानुबन्ध होता है। वे असुरकुमार-देव (सौधर्म कल्पवासी देवों को डराने के लिए) विशाल शरीर का निर्माण करते हैं, अन्य देवियों के साथ भोग करना चाहते हैं, आत्मरक्षक देवों को संत्रस्त करते हैं, छोटे, रत्नों को चुराकर स्वयं एकान्त स्थान में चले जाते हैं। ९१. भन्ते! क्या उन देवों के पास छोटे रत्न हैं? हां, हैं। ९२. असुरकुमार-देव छोटे रत्नों को चुरा एकान्त में चले जाते हैं। तब वैमानिक देव क्या करते वैमानिक-देव उन असुरकुमार-देवों के शरीर को प्रव्यथित करते हैं-शस्त्र-प्रहार से आहत कर डालते हैं। ९३. भन्ते! सौधर्म-कल्प में गए हुए असुरकुमार-देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोगार्ह भोग भोगने में समर्थ हैं? यह बात संगत नहीं हैं। वे वहां से लौट आते हैं। वहां से लौट कर अपने असुरकुमार-आवासों में आ जाते हैं। यदि वे अप्सराएं उनका आदर करती हैं और उन्हें स्वीकार करती हैं, तो वे असुरकुमार-देव उन उप्सराओं के साथ दिव्य भोगार्ह भोग भोगने में समर्थ हैं। यदि वे अप्सराएं उनका आदर नहीं करती हैं और उन्हें स्वीकार नहीं करती हैं, तो वे असुरकुमार-देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोगार्ह भोग भोगने में समर्थ नहीं है। गौतम! इस प्रकार ११५
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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