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________________ भगवती सूत्र श. ३ : उ. १ : सू. ६९-७६ ईशान ! इस समय यह कार्य करणीय ह। ओ! यह करणीय है, ओ! यह करणीय है-इस प्रकार वे परस्पर एक दूसरे के करणीय कार्य का अनुभव करते हुए विहार करते हैं। ७०. भन्ते! क्या उन देवेन्द्र देवराज शक्र और ईशान के मध्य कभी विवाद उत्पन्न होते हैं? हां, होते हैं। ७१. ऐसा होने पर वे उसे कैसे सुलझाते हैं? गौतम! उस समय वे देवेन्द्र देवराज शक्र और ईशान देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार की मानसिक स्मृति करते हैं। उन देवेन्द्र देवराज शक्र और ईशान द्वारा मानसिक स्मृति करने पर शीघ्र ही वह देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार उन देवेन्द्र देवराज शक्र और ईशान के पास प्रकट होता है। वह जो कहता है (उसे शिरोधार्य करते हैं), उसकी आज्ञा, उपपात (सेवा), आदेश और निर्देश का पालन करते हैं। सनत्कुमार-पद ७२. भन्ते! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक (मुक्ति जाने के लिए योग्य) है? अभवसिद्धिक है? सम्यग्दृष्टि है? मिथ्यादृष्टि है? परीत-संसारी है? अनन्त-संसारी है? सुलभबोधिक है? दुर्लभबोधिक है? आराधक है? विराधक है? चरम है? अचरम है? गौतम! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं है। सम्यग्दृष्टि है, मिथ्यादृष्टि नहीं है। परीत-संसारी है, अनन्त-संसारी नहीं है। सुलभबोधिक है, दुर्लभबोधिक नहीं है। आराधक है, विराधक नहीं है। चरम है, अचरम नहीं है। ७३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से (कहा जा रहा है)? गौतम! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार अनेक साधुओं, अनेक साध्वियों, अनेक श्रावकों और अनेक श्राविकाओं का हित चाहने वाला, सुख चालने वाला, पथ्य चाहने वाला, अनुकम्पा करने वाला, निःश्रेयस् की दिशा में प्रेरित करने वाला है। हित, सुख और निःश्रेयस् चाहने वाला है। गौतम! इस अपेक्षा से देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं है। सम्यग्दृष्टि है, मिथ्या-दृष्टि नहीं है। परीत-संसारी है, अनन्त-संसारी नहीं है। सुलभबोधिक है, दुर्लभबोधिक नहीं है। आराधक है, विराधक नहीं है। चरम है, अचरम नहीं ७४. भन्ते! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है? गौतम! सात सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है। ७५. भन्ते! वह आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय होने के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होगा, सब दुःखों का अन्त करेगा। ७६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ११३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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