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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. १ : सू. ५०-५७ उपलब्ध किया है, प्राप्त किया है अभिसमन्वात किया है, वह हमने देख लिया है। इसलिए हम आपसे क्षमायाचना करते हैं, देवानुप्रिय! आप हमें क्षमा करें, देवानुप्रिय! आप क्षमा करने में समर्थ हैं, देवानुप्रिय! हम पुनः ऐसा न करने के लिए संकल्प करते हैं। ऐसा कह कर वे इस बात के लिए सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करते हैं। ५१. वह देवेन्द्र देवराज ईशान उन बलिचञ्चा राजधानी में रहने वाले अनेक असुरकुमार देव
और देवियों के द्वारा इस बात के लिए सम्यक् प्रकार से विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करने पर उस दिव्य देवर्द्धि यावत् तेजोलेश्या को पुनः अपने भीतर समेट लेता है। गौतम! उस दिन से वे बलिचञ्चा राजधानी में रहने वाले अनेक असुरकुमार देव और देवियां देवेन्द्र देवराज ईशान को आदर करते हैं, स्वामी के रूप में स्वीकार करते हैं, सत्कार-सम्मान देते हैं, कल्याणकारी, मंगलकारी, देव रूप और चित्ताह्लादक मानकर विनयपूर्वक पर्युपासना करते हैं। वे देवेन्द्र देवराज ईशान की आज्ञा, उपपात (सेवा), आदेश और निर्देश में रहते हैं। गौतम! इस प्रकार देवेन्द्र देवराज ईशान ने वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देव-द्युति और दिव्य
देवानुभाव उपलब्ध किया है, प्राप्त किया है, अभिसमन्वागत (विपाकाभिमुख) किया है। ५२. भन्ते! देवेन्द्र देवराज ईशान की स्थिति कितनी प्रज्ञप्त हैं।
गौतम! कुछ अधिक दो सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है। ५३. भन्ते! देवेन्द्र देवराज ईशान आयु-क्षय, भव-क्षय और स्थिति-क्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जाएगा? कहा उपपन्न होगा? गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परितनवृत्त होगा, सब दुखों का अन्त करेगा। शक्रेशान-पद ५४. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान के विमान देवेन्द्र देवराज शक्र के विमानों से कुछ ऊंचे हैं? कुछ उन्नत हैं? क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के उच्चतर उन्नततर विमान देवेन्द्र देवराज ईशान के विमानों से कुछ नीचे हैं? कुछ निम्न हैं?
हां, गौतम! यह सब इसी प्रकार ज्ञातव्य है। ५५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? गौतम! जैसे हथेली का एक भाग ऊंचा और उन्नत होता है, एक भाग नीचा और निम्न होता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-देवेन्द्र देवराज शक्र के विमान यावत् कुछ निम्न हैं। ५६. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान के पास प्रकट होने में समर्थ है?
हां, वह समर्थ है। ५७. भन्ते! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है? गौतम! वह आदर करता हुआ समर्थ ह, अनादर करता हुआ समर्थ नहीं है।
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