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________________ भगवती सूत्र श. २ : उ. ५ : सू. १११-११३ भन्ते ! विज्ञान का क्या फल है ? गौतम ! विज्ञान का फल प्रत्याख्यान है । भन्ते ! प्रत्याख्यान का क्या फल है ? गौतम ! प्रत्याख्यान का फल संयम है। भन्ते ! संयम का क्या फल है ? गौतम ! संयम का फल अनास्रव है। भन्ते ! अनास्रव का क्या फल है ? गौतम ! अनास्रव का फल तप है । भन्ते! तप का क्या फल है ? गौतम ! तप का फल व्यवदान है। भन्ते ! व्यवदान का क्या फल है ? गौतम ! व्यवदान का फल अक्रिया है । भन्ते ! अक्रिया का क्या फल है ? गौतम ! अक्रिया का अन्तिम फल सिद्धि है । संग्रहणी गाथा श्रवण, ज्ञान, विज्ञान, प्रत्याख्यान, संयम, अनास्रव, तप, व्यवदान, अक्रिया और सिद्धि । उष्णजलकुण्ड पद ११२. भन्ते ! अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं, भाषण करते हैं, प्रज्ञापन करते हैं, प्ररूपणा करते हैं - राजगृह नगर के बाहर वैभार पर्वत के नीचे अघ नामक एक विशाल द्रह प्रज्ञप्त है। उसकी लंबाई-चौड़ाई अनेक योजन है। उसका तटभाग नाना द्रुम-वनों से मण्डित है । वह श्री सम्पन्न, द्रष्टा के चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय है । उसमें बहुत प्रधान बलाहक (जलीय स्कन्धों को ऊपर उठाने वाला ताप) भाप बनते हैं, बादल बनते हैं और बरसते हैं। उस जलाशय के भर जाने पर वह सदा सघन रूप में गरमगरम जल का अभिनिःस्रवण करता I ११३. भन्ते ! यह इस प्रकार कैसे है ? गौतम ! जो अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् जो वे ऐसा आख्यान करते हैं, वे मिथ्या आख्यान करते हैं। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपणा करता हूं - राजगृह नगर के बाहर वैभार पर्वत के न अतिदूर न अतिनिकट महातपोपतीरप्रभव नामक निर्झर है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई पांच सौ धनुष है। उसका तटभाग नाना द्रुम-वनों से मण्डित है, वह श्रीसंपन्न, द्रष्टा के चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय है। वहां अनेक उष्णयोनिक जीव और पुद्गल उदक रूप में उत्पन्न होते हैं और विनष्ट होते हैं, च्युत होते हैं और उत्पन्न होते हैं । उस जलाशय के भर जाने पर उससे सदा ८९
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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