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________________ भगवती सूत्र श. २ : उ. ५ : सू. ८०-८८ २. एक जीव एक समय में एक ही वेद का वेदन करता है, जैसे स्त्रीवेद का अथवा पुरुषवेद का। जिस समय वह स्त्री-वेद का वेदन करता है, उस समय पुरुष-वेद का वेदन नहीं करता। जिस समय वह पुरुष-वेद का वेदन करता है, उस समय स्त्री-वेद का वेदन नहीं करता। वह स्त्री-वेद के उदय से पुरुष-वेद का वेदन नहीं करता और पुरुष-वेद के उदय से स्त्री-वेद का वेदन नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही वेद का वेदन करता है, जैसे स्त्री-वेद का अथवा पुरुष-वेद का। स्त्री उदयप्राप्त स्त्री-वेद के कारण पुरुष की इच्छा करती है और पुरुष उदय-प्राप्त पुरुष-वेद के कारण स्त्री की इच्छा करता है। वे दोनों परस्पर एक दूसरे की इच्छा करते हैं, जैसे स्त्री पुरुष की इच्छा करती है, पुरुष स्त्री की इच्छा करता है। ८१. भन्ते! उदक-गर्भ उदक-गर्भ के रूप में काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः छह मास। ८२. भन्ते! तिर्यग्योनिक-गर्भ तिर्यग्योनिक-गर्भ के रूप में काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्तः, उत्कर्षतः आठ वर्ष । ८३. भन्ते! मानुषी-गर्भ मानुषी-गर्भ के रूप में काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त उत्कर्षतः बारह वर्ष । ८४. भन्ते! कायभवस्थ (माता के उदर में रहे हुए अपने गर्भ-शरीर में उत्पन्न होने वाला जीव) कायभवस्थ के रूप में काल की दृष्टि से कितने समय तक रहता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त उत्कर्षतः चौबीस वर्ष । ८५. भन्ते! मनुष्य और पञ्चेन्द्रिय-तिर्यंच का योनि-बीज (वीर्य) कितने काल तक योनिभूत (उत्पादक शक्तिवाला) रहता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त उत्कर्षतः बारह मुहूर्त । ८६. भन्ते! एक जीव एक भव में कितने जीवों का पुत्र हो सकता है? गौतम! जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कर्षतः नौ सौ तक जीवों का पुत्र हो सकता है। ८७. भन्ते! एक जीव के एक भव में कितने जीव पुत्र-रूप में उत्पन्न हो सकते हैं? गौतम! जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कर्षतः नौ लाख जीव पुत्र-रूप में उत्पन्न हो सकता है। ८८. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-एक जीव के जघन्यतः एक, दो या तीन और उत्कर्षतः नौ लाख जीव पुत्र-रूप में उत्पन्न हो सकते हैं? । गौतम! स्त्री और पुरुष की कर्मकृत (कामोद्दीपक) योनि में मैथुनवृत्तिक नामक संयोग उत्पन्न
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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