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भगवती सूत्र
श. १ : उ. १० : सू. ४४३
स्वसमयवक्तव्यता-पद ४४३. भन्ते! यह इस प्रकार कैसे होता है?
गौतम! वे अन्ययूथिक जो ऐसा आख्यान करते हैं यावत् वेदना का अनुभव करते हैं ऐसा कहा जा सकता है। जो ऐसा कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं-चलमान चलित, उदीर्यमाण उदीरित, वेद्यमान वेदित, प्रहीयमाण प्रहीण, छिद्यमान छिन्न, भिद्यमान भिन्न, दह्यमान दग्ध, म्रियमाण मृत, निर्जीर्यमाण निर्जीर्ण होता है। दो परमाणु-पुद्गलों की एक संहति होती है, दो परमाणु-पुद्गलों की एक संहति किस कारण से होती है? दो परमाणु-पुद्गलों में स्नेहकाय होता है; इसलिए उन दो परमाणु-पुद्गलों की एक संहति होती है। वे टूटने पर दो भागों में विभक्त होते हैं। दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर एक ओर एक परमाणु-पुद्गल होता है, दूसरी ओर भी एक परमाणु-पुद्गल होता है। तीन परमाणु-पुद्गलों की एक संहति होती है, तीन परमाणु-पुद्गलों की एक संहति किस कारण से होती है? तीन परमाणु-पुद्गलों में स्नेहकाय होता है; इसलिए उन तीन परमाणु-पुद्गलों की एक संहति होती है।
वे टूटने पर दो या तीन भागों में विभक्त होते हैं। दो भागों में विभक्त होने पर एक ओर परमाणु-पुद्गल होता है, दूसरी ओर द्वि-प्रदेशी स्कन्ध होता है। तीन भागों में विभक्त होने पर तीन परमाणु-पुद्गल हो जाते हैं। चार परमाणु-पुद्गल भी इसी प्रकार वक्तव्य हैं। पांच परमाणु-पुद्गलों की एक संहति होती है। वे एकरूप में संहत होकर स्कन्ध के रूप में परिणत होते हैं। वह स्कन्ध भी अशाश्वत है और सदा संगठित रूप में उपचित तथा अपचित होता है। बोलने से पहले भाषा अभाषा है। बोलते समय भाषा भाषा है। बोलने का समय व्यतिक्रान्त होने पर बोली गई भाषा अभाषा है। बोलने से पहले जो भाषा अभाषा है, बोलते समय भाषा भाषा है, बोलने का समय व्यतिक्रान्त होने पर बोली गई भाषा अभाषा है। क्या वह जो बोल रहा है, उसके भाषा है? जो नहीं बोल रहा है, उसके भाषा है?