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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ८ : सू. ३७३-३८० दो समान व्यक्ति परस्पर एक दूसरे के साथ युद्ध करते हैं। वहां एक व्यक्ति जीतता है और एक पराजित होता है । भन्ते ! यह ऐसा क्यों होता है ? गौतम ! सवीर्य जीतता है, अवीर्य पराजित होता है । ३७४. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-सवीर्य जीतता है और अवीर्य पराजित होता है ? गौतम ! जिसके वीर्यबाह्य कर्म बद्ध स्पृष्ट, निधत्त, कृत, प्रस्थापित, अभिनिविष्ट, अभिसमन्वागत और उदीर्ण नहीं होते-उपशान्त होते हैं, वह जीतता है। जिसके वीर्यबाह्य- कर्म बद्ध, स्पृष्ट, निधत्त, कृत, प्रस्थापित, अभिनिविष्ट, अभिसमन्वागत और उदीर्ण होते हैं - उपशान्त नहीं होते, वह पुरुष पराजित होता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - सवीर्य जीतता है और अवीर्य पराजित होता है । वीर्य-पद ३७५. भन्ते ! क्या जीव सवीर्य हैं ? अवीर्य हैं ? गौतम! जीव सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं। ३७६. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे संसार - समापन और असंसार - समापन्न । इनमें जो असंसार - समापन हैं, वे सिद्ध हैं । सिद्ध अवीर्य होते हैं। इनमें जो संसार - समापन्न हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- शैलेशी - प्रतिपन्न और अशैलेशी - प्रतिपन्न । इनमें जो शैलेशी - प्रतिपन्न हैं, वे लब्धि-वीर्य से सवीर्य और करण वीर्य से अवीर्य होते हैं। इनमें जो अशैलेशी - प्रतिपन्न हैं, वे लब्धि-वीर्य से सवीर्य और करणवीर्य से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सवीर्य भी और अवीर्य भी । ३७७. भन्ते ! क्या नैरयिक सवीर्य हैं ? अथवा अवीर्य हैं ? गौतम ! नैरयिक लब्धि-वीर्य से सवीर्य हैं तथा करण वीर्य से सवीर्य और अवीर्य दोनों हैं । ३७८. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिक लब्धि-वीर्य से सवीर्य तथा करण - वीर्य से सवीर्य और अवीर्य दोनों हैं ? गौतम! जो नैरयिक उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम से युक्त हैं, वे लब्धिवीर्य से भी सवीर्य हैं और करण - वीर्य से भी सवीर्य हैं। जो नैरयिक उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार पराक्रम से हीन हैं, वे लब्धि-वीर्य से सवीर्य और करण - वीर्य से अवीर्य हैं। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - नैरयिक लब्धि - वीर्य से सवीर्य हैं तथा करण - वीर्य से सवीर्य और अवीर्य दोनों हैं। ३७९. पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक तक नैरयिक की भांति ज्ञातव्य हैं । ३८०. भन्ते ! क्या मनुष्य सवीर्य हैं ? अथवा अवीर्य हैं ? ५१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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